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गहराता जा रहा है उडुपी मठ के संत की मृत्यु का मामला

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गहराता जा रहा है उडुपी मठ के संत की मृत्यु का मामला

समर्थक मान रहे हैं हत्या की गई, विश्वेशा तीर्थ ने कहा लक्ष्मीवारा इस पवित्र पद योग्य ही नहीं थे

    उडुपी मठ में एक पीठाधीश संत की मृत्यु का मामला अब एक नया मोड़ ले रहा है और चीजें संदिग्ध होती जा रही हैं. उडुपी के अष्टमठ के सबसे वरिष्ठ पीठासीन संत विश्वेशा तीर्थ स्वामी की ओर से हत्या की थ्योरी को पूरी तरह नकारने के बाद चीजें और उलझ गई है. उन्होंने शिरुर मठ के दिवंगत संत लक्ष्मीवारा तीर्थ की आलोचना ये कहते हुए की है कि वे इस पवित्र पद के लायक नहीं थे.

    मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि लक्ष्मीवारा तीर्थ उडुपी मठ की सदियों पुरानी परंपराओं का पालन नहीं कर रहे थे. उनमें कई दोष थे. उन्होंने कहा, “वे औरतों के शौकीन थे. उनके औरतों से अवैध संबंध थे और बच्चे भी थे. वे पीते भी थे. हम उन्हें किसी भी तरह से संत नहीं मानते.”

    विश्वेशा तीर्थ ने ये भी चुनौती दी कि अगर कोई साबित कर दे कि उनके बच्चे हैं या फिर औरतों से उनका कोई लेना देना हो तो वे पीठ छोड़ देंगे. दिवंगत संत ने कहा था कि उडुपी के सभी संतों के बच्चे हैं. तब भी एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ था और उनसे इस आरोप की पुष्टि करने को कहा गया था.

    सप्ताह भर बाद भी उनकी मृत्यु को लेकर रहस्य बरकरार है. अभी तक कारणों का पता नहीं चल सका है. उनके समर्थकों का आरोप है कि उडुपी मठ के कुछ ताकतवर लोगों की शह पर उन्हें जहर दिया गया.
    लेकिन मठ के बाकी लोग इससे इनकार करते हैं और उनके मुताबिक संत की मृत्यु फूड-प्वाइजनिंग से हुई है.

    पिछले मंगलवार को 55 साल के विवादित संत का उडुपी के निकट मनिपाल के केएमसी अस्पताल में हो गया था. शुरु में इसे फूड प्वाइजनिंग से हुई मृत्यु माना गया. उसके बाद उनके भक्त इस पर संदेह जताने लगे, पुलिस में सदिग्ध मृत्यु का मामला दर्ज हुआ और जांच शुरु की गई.

    कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और उप मुख्यमंत्री डॉ. जी परमेश्वर ने मठ में उनके भक्तों को आश्वास्त किया कि हर ओर से निष्पक्ष जांच कराई जाएगी.

    शुरुआती जांच में जो सामने आया उससे मामला और उलझ गया. जानकारों के मुताबिक पुलिस को मठ से शराब की बोतलें, कामोत्तेजक समाग्री, कंडोम और सेनेट्री नैपकीन्स मिले.

    जानकारों का ये भी दावा है कि दिवंगत संत से संबंधों का दावा करने वाली तीस साल की महिला भी संत की मृत्यु के समय से ही लापता है और हत्या में लोग उसका हाथ होना बता रहे है. मठ के एक स्टॉफ ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर न्यूज 18 को बताया दिवंगत संत पर उस महिला का खासा असर था और वो बहुत अधिक समय मठ में बिताती थी.

    कुछ ये भी दावा कर रहे हैं कि जिन लोगों को उनसे दिक्कत थी उन्होंने महिला का इस्तेमाल दिवंगत संत से छुटकारा पाने के लिए किया.

    उडुपी में शिरुर मठ की तकरीबन 500 एकड़ जमीन है. इस संपदा की अनुमानित कीमत आज के हिसाब से 500 करोड रुपये से ज्यादा है. बहुत से लोग इससे भी इनकार नहीं करते कि कोई बिजनेस डील ऐसी की गई हो जिसके कारण संत की मृत्यु हुई हो.

    उनके अंतिम संस्कार में बाकी बचे सातों पीठों का कोई भी संत शामिल नहीं हुआ और सभी हर तरह से अलग रहे. शिरुर के संत का बारहवी सदी माधवाचार्य के द्वैत दर्शन का पालन करने वाली सातों पीठों के साथ संबंध बहुत ही तल्ख रहा.

    लक्ष्मीवरा तीर्थ उस समय समाचारो की सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने घोषणा की थी कि अगर बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे उडुपी से निर्दल प्रत्याशी के रूप में विधान सभा चुनाव लडेंगे.

    उन्होंने राज्य के बीजेपी नेताओं से कह दिया था कि वे तभी अपनी दावेदारी छोड़ेगे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे इस बारे में आग्रह करें. बाद में वे नहीं लड़े और बीजेपी के रघुपति भट लड़े और उडुपी से जीते
    न्यूज 18 के साथ एक बार बातचीत में उन्होंने राजनीति में उतरने के अपने फैसले को सही ठहराया था.
    बेपरवाह जीवन और बेबाक बयानों के कारण वे राज्य में किसी सनसनी की तरह बन गए थे. उन्हें पसंद करने वालों और नापसंद करने वालों की संख्या बराबर ही है. 800 साल की परंपरा को तोड़ कर उन्होंने समुद्र पार जा कर यात्राएं की.

    मंदिरों के शहर उडुपी में भगवान कृष्ण का मंदिर और उसके चारों ओर आठ मठ है. इनकी स्थापना 12वी सदी के महान संत माधवाचार्य द्वारा बनाए गए थे, जिन्होंने द्वैत दर्शन दिया था.

    सभी मठ अलग अलग है. हर मठ का पीठाधीश संत भगवान कृष्ण की 14 साल में एक बार पर्याय कहे जाने वाली अपनी तरह के अलग पूजा की अगुवाई करता है.

    विश्वेशा तीर्थ सबसे वरिष्ठ पेजवारा है और वीएचपी के चोटी के नेताओं में हैं. वे रामजन्मभूमि आंदोलन की अगुवाई करने वाले नेताओं में हैं और लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती जैसे नेताओं के नजदीकी भी हैं.

    हर मुद्दे पर सरकार को घेरने वाली कर्नाटक बीजेपी संत की मृत्यु के मामले पर रहस्यमय तरीके से चुप है, जबकि वे बीजेपी के काफी करीबी माने जाते रहे.