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UPA शासन में बोइंग के साथ 2.1 अरब डॉलर के विमान सौदे को लेकर CAG ने उठाए सवाल

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UPA शासन में बोइंग के साथ 2.1 अरब डॉलर के विमान सौदे को लेकर CAG ने उठाए सवाल

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने 20 साल के लिये उत्पादों के रखरखाव को लेकर स्पेन की एयरोस् ...अधिक पढ़ें

    नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के दौरान नौसेना के लिये बोइंग को दिये गये 2.1 अरब डालर के विमानों के ठेके पर सवाल उठाया है. कैग ने कहा कि पी-81 समुद्री टोही विमान का बेड़ा खरीदने के लिये प्रतिद्वंद्वी बोलीदाता स्पेन की ईएडीएस सीएएसए की जगह अमेरिकी रक्षा कंपनी को तरजीह दी गयी.

    संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने 20 साल के लिये उत्पादों के रखरखाव को लेकर स्पेन की एयरोस्पेस कंपनी की वित्तीय बोली को बढ़ाया. यह इस मान्यता पर किया गया कि बोइंग की पेशकश में इसी प्रकार का प्रावधान है.

    बाद में बोइंग ने अलग से अनुबंध बातचीत में विमानों के रखरखाव में मदद की पेशकश की जिस पर मोल-भाव करने की गुंजाइश थी. कैग ने इस निष्कर्ष को गलत बताया कि अमेरिकी कंपनी सबसे कम बोली लगाने वाली (एल-1) इकाई थी.

    रिपोर्ट के अनुसार उत्पाद समर्थन लागत को शामिल कर स्पेन की कंपनी की वित्तीय बोली को बढ़ाने से वह दूसरी सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी (एल- 2) बन गयी.

    इसमें कहा गया है कि जनवरी 2009 में बोइंग के साथ सौदे को अंतिम रूप दिया गया. यह सौदा 2.1 अरब डॉलर (मौजूदा विनिमय दर पर 14,500 करोड़ रुपये) का था.

    रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘बाद में अमेरिकी कंपनी बोइंग ने अलग बातचीत वाले अनुबंध के तहत उत्पाद समर्थन की पेशकश की और परिणामस्वरूप बोइंग को सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी ठहराना गलत है.’’

    कैग ने यह भी कहा कि अमेरिकी विमान भारतीय नौसेना की जरूरतों को पूर्ण रूप से पूरा नहीं करता. इसका मुख्य कारण विमान के अंदर लगे रडार की सीमा है.

    रिपोर्ट के अनुसार रक्षा मंत्रालय ने बोइंग के लिये ‘आफसेट’ अनुबंध के तहत बोइंग पर भारत में 64.1 करोड़ डॉलर (3,127.43 करोड़ रुपये) के निवेश की जिम्मेदारी तय की थी.

    कैग ने कहा कि बोइंग ने अबतक आपसेट की शर्त को पूरा नहीं किया है जबकि उसे यह काम 2016 तक पूरा करना था. बोइंग ने भारत से केवल खरीद का ऑर्डर भर देकर ‘आफसेट की शर्त पूरी करने का श्रेय’ ले लिया जबकि इससे आफसेट की शर्त का उद्येश्य पूरा नहीं होता.

    देश की ‘आफसेट’ नीति के तहत विदेशी रक्षा इकाइयों को कुल अनुबंध मूल्य का कम-से-कम 30 प्रतिशत कल-पुर्जों की खरीद या शोध एवं विकास सुविधाएं लगाने में खर्च करने की अनिवार्यता है.

    वर्ष 2009 में आठ पी-81 विमान के लिये सौदा हुआ था. पहला विमान मई 2013 में भारत में आया और सभी आठ विमान भारतीय नौसेना में शामिल कर लिये गये हैं.

    कैग ने इन विमान के लिये बम खरीदने में देरी को लेकर भी आलोचना की है.