एससी-एसटी एक्ट का विरोध कर रहे सवर्ण संगठनों की ये हैं प्रमुख मांगें

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एससी-एसटी एक्ट का विरोध कर रहे सवर्ण संगठनों की ये हैं प्रमुख मांगें

सुप्रीम कोर्ट. (सुप्रीम कोर्ट)

सुप्रीम कोर्ट. (सुप्रीम कोर्ट)

सरकार के इस संशोधित एससी/एसटी एक्ट का विरोध हो रहा है. जगह-जगह सवर्णों से जुड़े संगठन विरोध कर रहे हैं. कई राज्यों में ...अधिक पढ़ें

    केंद्र सरकार ने हाल ही में संशोधित अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) एक्ट लागू किया है. लेकिन सरकार के इस संशोधित एससी/एसटी एक्ट का विरोध हो रहा है. जगह-जगह सवर्णों से जुड़े संगठन विरोध कर रहे हैं. कई राज्यों में तो केन्द्रीय मंत्रियों और सांसदों को भी सवर्णों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. आइए जानते हैं कि सवर्णों से जुड़े संगठन सुप्रीम कोर्ट के द्वारा संशोधित दूसरे कौन से बिन्दुओं को इस एक्ट में शामिल कराना चाहते हैं.

    एक शिक्षक संगठन से जुड़े यूपी निवासी ब्रजेश दीक्षित का कहना है सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी/एसटी ऐक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था. इसके अलावा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी. शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए.

    यही नहीं शीर्ष अदालत ने ये भी कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती. और गैर-सरकारी कर्मी की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की मंजूरी जरूरी होगी. लेकिन केन्द्र सरकार ने किया एकदम इसके उलट.

    दूसरी ओर मध्य प्रदेश में सपाक्स संगठन के संयोजक हीरालाल त्रिवेदी का कहना है कि एक्ट में 22 और छोटे-छोटे अपराधों को जोड़कर सवर्णों के खिलाफ साजिश की गई है.

    सुप्रीम कोर्ट के इस संशोधित एक्ट की मांग कर रहे हैं सवर्ण संगठन


    1. इस कानून में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं था. लेकिन अब कोर्ट ने कहा है कि इस कानून के तहत भी आरोपित को अग्रिम जमानत मिल सकती है.

    2. किसी भी गंभीर अपराध की सूचना जब पुलिस को मिलती है तो उसे तुरंत ही इसकी एफआईआर यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करनी होती है. एससी-एसटी एक्ट के तहत भी ऐसा ही होता था. लेकिन अब कोर्ट ने कहा है कि इस अधिनियम के तहत आने वाले मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले उस क्षेत्र के पुलिस उप-अधीक्षक शिकायत की प्राथमिक जांच करेंगे. यदि वे संतुष्ट होते हैं कि आरोप झूठे नहीं हैं, तभी एफआईआर दर्ज होगी.

    3. किसी भी संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध की तरह ही इस कानून में भी शिकायत दर्ज होने पर आरोपित को गिरफ्तार किये जाने का प्रावधान था. अब कोर्ट ने कहा है कि इस कानून के तहत किसी भी लोक सेवक की गिरफ्तारी सिर्फ तभी हो सकेगी जब उस लोकसेवक का नियुक्ति प्राधिकारी इसकी लिखित अनुमति दे. इसके अलावा अन्य आरोपितों (जो लोकसेवक नहीं हैं) की गिरफ्तारी सिर्फ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की लिखित अनुमति के बाद ही होगी.

    4. सपाक्स ने ही पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका लगाई हुई है.


     

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