जम्मू-कश्मीर में कब बनेगी नई सरकार?
जम्मू-कश्मीर को जल्द ही नया राज्यपाल मिलना ही है. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में नियुक्त एन एन वोहरा 2008 से लगातार जम्मू ...अधिक पढ़ें
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जम्मू कश्मीर में जब से बीजेपी-पीडीपी की सरकार गिरी है, अटकलों का दौर थम नहीं रहा है. कभी पीडीपी में विद्रोह होता है तो कभी कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस को इस संभावना को नकारना पड़ता है कि वो सरकार बनने की रेस में हैं. आखिर केन्द्र चाहता क्या है? उच्च पदस्थ सूत्र बताते है कि समर्थन वापसी के बाद सरकार ने कश्मीर के लिए एक रोड मैप तैयार किया हुआ है, जिनको अमली जामा पहनाने का काम चल रहा है. इस मुहिम में राज्यपाल के नए सलाहकार, नए मुख्य सचिव, नए इंटरलॉक्यूटर शिद्दत से लगे हुए हैं, इसलिए आने वाले तीन चार महीनों में सरकार बनाने की संभावना न के बराबर ही है.
कब बनेगी सरकार
गुरुवार को बीजपी के प्रभारी महासचिव राम माधव जम्मू में थे. उनकी मौजूदगी में सरकार बनाने की अटकलें तेज हो गईं. लोगों को लगा कि नई सरकार की संभावना तलाशने राम माधव जम्मू पहुंचे थे. लेकिन सरकारी सूत्रों का दावा है कि फिलहाल विधानसभा भंग कर नए चुनाव कराने का कोई इरादा नहीं है. संकेत है कि अगले तीन महीने तक जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन ही रहेगा. केन्द्र का स्पष्ट मत है कि जब इस विधानसभा का कार्यकाल 2020 तक है. जिसमें अभी ढाई साल बाकी हैं, तो फिर इसे भंग कर चुनाव करवाने का कोई औचित्य नहीं बनता है.
बीजेपी की समर्थन वापसी के बाद कांग्रेस से लेकर नेशनल कांफ्रेंस ने संभावनाएं तलाशीं तो जरूर लेकिन बीजेपी या पीडीपी के बगैर कोई गठबंधन आगे बढ़ता नजर नहीं आया. पीडीपी में भी बगावत के बिगुल बजे लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात. दरअसल जम्मू कश्मीर की विधानसभा में बीजेपी 25 विधायकों के साथ एक बड़ी ताकत बन चुकी है. साथ ही केन्द्र में बीजेपी-एनडीए की ही सरकार है. ऐसे में राज्य की दूसरी बड़ी पार्टियों ने अपने कदम वापस खींच लिए क्योंकि सारे इक्के तो बीजेपी के हाथ में ही है.
जम्मू-कश्मीर अकेला राज्य है जहां विधानसभा कार्यकाल 6 साल का होता है. सूत्र बताते हैं कि तीन महीने तक केन्द्र सरकार अपने बनाए प्लान पर काम करेगी. उसके बाद सरकार बनाने की संभावनाएं तलाश की जाएंगी. अगर कोई गठबंधन उभरता है तो फिर राज्यपाल शासन हटा कर विधानसभा बहाल कर दी जाएगी. ये बात और है कि अगर कोई विकल्प तैयार नहीं होता फिर विधानसभा भंग करने पर विचार किया जाएगा. जाहिर है कोई भी विधायक वक्त से पहले चुनाव नहीं चाहता. ऐसे में तीन महीने की डेडलाइन के बाद सरकार बनने के आसार प्रबल हैं.
राज्यपाल शासन में क्या सुधार चाहता है केन्द्र
पीडीपी के साथ बीजेपी को अपने वोट बैक का खासा नुकसान होता नजर आ रहा था. आतंक के खिलाफ जंग में पीडीपी आतंक के लिए नरम नजर आतीं थीं. ऐसे में पत्थरबाजी की घटनाएं, सेना के कैंपों पर आतंकी हमलों के बाद ऐसा लगने लगा था कि कश्मीर की शांति भंग हो गई है. अमरनाथ यात्रा को लेकर भी पूरी ताकत झोंकनी पड़ी है. जाहिर है बीजेपी के वोटरों और कार्यकर्ताओं में संदेश गलत जा रहा था. केन्द्र सरकार की जीरो-टॉलरेंस की नीति पर भी सवालिया निशान उठने लगे थे. तभी तो अपनी ही सरकार गिराने का फैसला लेना पड़ा. समर्थन वापसी भी ऐसी जिसमें न कोई तू तू मै मैं हुई और ना ही कोई तल्ख बयानबाजी.
सूत्र बताते हैं कि केन्द्र ने जम्मू कश्मीर में शांति बहाली के लिए राज्यपाल शासन के तहत एक रोड मैप तैयार किया है. जिस पर राज्यपाल शासन में अमल किया जा रहा है. एक तो आतंक के खिलाफ आर-पार की लड़ाई और दूसरे उन पुराने कानूनों को फिर से विचार करना जिसके कारण आतंकी और उन्हे पनाह देने वाले फल-फूल रहे थे. नए अधिकारी तैनात किए गए. सुरक्षा बलों ने आतंक के खिलाफ अपनी कारवाई जारी रखी. यानि अमन की वापसी पहली और आखिरी प्रआतमिकता है राज्यपाल शासन की.
क्या बदलेगा गवर्नर
जम्मू-कश्मीर को जल्द ही नया राज्यपाल मिलना ही है. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में नियुक्त एन एन वोहरा 2008 से लगातार जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहे हैं. जब 2014 के विधानसभा चुनावों के बाद दो महीने सरकार नहीं पाई थी तब भी राज्यपाल शासन ठीक-ठाक ही चला.
सूत्र बताते हैं कि अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देकर कई बार वो खुद पद छोड़ने की पेशकश कर चुके हैं. लेकिन उनके अनुभव के कारण मोदी सरकार भी उन पर ही दांव लगाती रही. लेकिन अब संकेत हैं कि नए राज्यपाल की नियुक्ति का समय आ गया है. अटकलें थी कि किसी वरिष्ठ रिटायर्ड अधिकारी को नया राज्यपाल बनाया जाएगा.
शीर्ष सूत्र संकेत दे रहे हैं कि किसी अनुभवी राजनेता को भी ये कमान सौंपी जा सकती है. हालांकि अभी किसी नाम पर अंतिम फैसला नहीं हुआ है. सूत्र बताते हैं कि अमरनाथ यात्रा खत्म होने के बाद से नए राज्यपाल पर अंतिम फैसला लेने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.
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