भारतीय जेलों में कैदियों की हालत ठीक नहीं है. जेलों में क्षमता से अधिक कैदी रखे जा रहे हैं. विचाराधीन कैदियों की भीड-भाड़ सबसे ज्यादा है. कैदियों को टीबी की बीमारी हो रही है. जेल के अस्पताल भी अच्छी हालत में नहीं हैं. कई कैदी एड्स का शिकार बन रहे हैं.
100 बेड में से सिर्फ 30 से 40 बेड ही इस्तेमाल करने लायक बचे हैं. रसोईघर के हालात भी बुरे हैं. खाना, कपड़ा, मेडिकल, कल्याणकारी गतिविधियों और व्यावसायिक शिक्षा पर हर रोज एक कैदी पर सिर्फ 21.49 रुपये खर्च किए जा रहे हैं.
इतना ही नहीं कैदियों को अपने शरीर की साफ-सफाई रखने के लिए भी गंदगी से जूझना पड़ रहा है. नहाने के लिए नियमानुसार जगह नहीं है. कैदियों की संख्या को देखते हुए लैट्रिन की संख्या भी बहुत कम है. ये कहना है राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) का. समय-समय पर एनएचआरसी देशभर की जेलों का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार करती है.
जेल में कैदियों की हालत को दिखाता ये चार्ट.
ये है सेंट्रल जेल इंदौर के हाल
- क्षमता 1050 कैदी की लेकिन रखे गए हैं 2046 कैदी.
- 668 विचाराधीन कैदी रह रहे हैं.
- जेल में 100 बैड का हॉस्पिटल है. लेकिन इस वक्त 24 बेड सामान्य मरीजों और 18 बेड टीबी मरीजों के लिए ही सही हालात में हैं.
- हॉस्पिटल की किचन सही नहीं है.
- मरीज के सैम्पल लैबोट्ररी में भेजने की सुविधा नहीं है.
- जेल में 1 डॉक्टर, 28 बेड हैं, लेकिन कोई विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं आता है.
- जेल में टीबी के 16, एड्स के 17 और 37 मानसिक रोगी कैदी हैं.
- रसोई को अपग्रेड किए जाने की जरूरत है.
- कैदियों की जरूरत के हिसाब से लैट्रिन भी कम बनी हुई हैं.
- 10 कैदियों पर नहाने के लिए एक कवर्ड कैबिन टाइप जगह होनी चाहिए. लेकिन जेल में ऐसा नहीं है.
नोट: सेंट्रल जेल इंदौर का निरीक्षण एनएचआरसी की ओर से विनोद अग्रवाल ने किया था. रिपोर्ट मार्च में जारी की गई थी.
ये हाल है जिला जेल फरीदाबाद का
- जेल की क्षमता 2500 कैदी है, इस वक्त हैं जेल में 2136 कैदी हैं.
- जेल में 1181 विचाराधीन कैदी हैं.
- जेल के हॉस्पिटल में 125 बेड की जरूरत है. लेकिन निरीक्षण में सिर्फ 30 बैड ही मिले.
- जेल हॉस्पिटल में स्वास्थ्य सुविधाएं पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र) जैसी मिलीं.
- बैरक में नहाने और यूरीनल की जगह नियमानुसार नहीं हैं.
- जेल की लैट्रिन में फ्लश नहीं हैं.
- मरीज कैदियों के सैम्पल को लैबोट्ररी में भेजने की सुविधा नहीं है.
- जेल में टीबी के 6, एड्स के 5 और हार्ट 6, डायबिटीज के 7 मरीज कैदी हैं.
- जेल में 3 साल के भीतर 18 कैदियों की मौत हो चुकी है.
नोट: जिला जेल फरीदाबाद का निरीक्षण डॉ. विनोद अग्रवाल ने एनएचआरसी की ओर से किया था. फरवरी में रिर्पोट जारी की गई थी.
देश की जेलों के संबंध में गृहमंत्रालय की ओर से जारी कुछ आंकड़े
- देशभर की जेलों में 2.93 लाख विचाराधीन कैदी हैं.
- विचाराधीन कैदियों में पुरुष 280770 और महिलाएं 12288 हैं.
- हर साल 11 से 12 लाख विचाराधीन और 47 से 52 हजार दोषसिद्ध कैदी रिहा हो रहे हैं.
- 2014 में 16, 2015 में 15 और 2016 में 13 बार जेल तोड़ने की घटनाएं हो चुकी हैं.
- देश में प्रति कैदी पर खाना, कपड़ा और मेडिकल सहित दूसरी सुविधाओं पर 7780 रुपये प्रति वर्ष खर्च होते हैं.
- एक कैदी पर सबसे ज्यादा प्रति वर्ष 31991 हजार रुपये गोवा की जेल में खर्च होते हैं
- सबसे कम तेलंगाना में 1997 रुपये प्रति वर्ष प्रति कैदी खर्च होते हैं
- 2012 से 2015 तक जेल में हुईं हैं 550 आप्रकृतिक मौत.
- सबसे ज्यादा आप्रकृतिक मौत पंजाब, राजस्थान और यूपी में 17 15 12 कैदियों की हुई हैं.
कैदियों की संख्या बताने में गृह मंत्रालय दिखा रहा आंकड़ों की बाजीगरी
31 दिसम्बर 2016 को लोकसभा में कैदियों की संख्या के आधार पर जेलों की क्षमता और मौजूदा वक्त में कितने कैदी जेलों में रह रहे हैं के संबंध में पूछे गए एक सवाल के जवाब में गृहमंत्रालय ने बताया था कि देशभर के 36 प्रदेशों की 1412 जेलों की क्षमता 380876 है.
इसमे 354808 पुरुष और 26068 महिलाओं के लिए जगह है. अब क्षमता से अधिक कैदियों की संख्या गृहमंत्रालय की ओर से 433003 संख्या बताई गई है. इस हिसाब से गृहमंत्रालय ने बताया कि देशभर की जेलों में 31 दिसम्बर 2016 के अनुसार सिर्फ 53127 कैदी ही ज्यादा हैं.
लेकिन ये आंकड़ा खासा चौंकाने वाला था. जब न्यूज18 हिन्दी की टीम ने गृहमंत्रालय की ओर से लोकसभा में रखे गए आंकड़ों की पड़ताल की तो सामने आया कि सिर्फ 12 राज्यों जिसमे बिहार, यूपी, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ आदि शामिल हैं में 79 हजार कैदी क्षमता से अधिक रखे गए हैं.
जेलों के संबंध में आरटीआई से हुआ ये खुलासा
- सिर्फ यूपी में ही पांच साल में 2 हजार से ज्यादा विचाराधीन कैदियों की हो चुकी है मौत.
- यूपी से पांच साल में 64 कैदी हो चुके हैं फरार
जेल में महिला बंदियों के बच्चे भी तोड़ रहे दम
आगरा के आरटीई एक्टिविस्ट नरेश पारस का कहना है कि ‘जेल में बंद महिला बंदियों के मासूमों पर भी मौत कहर बनकर टूट रही है. 24 मई 2013 को हरदोई जिला जेल में वंदना के छह महीने के बेटे प्रिंस की मौत हुई. 18 अक्टूबर 2014 को मथुरा जिला जेल में जुमराती के नवजात बच्चे की मौत हो गई. 18 सिंतबर 2014 को कानपुर देहात जेल में रामकली के नवजात बेटे की मौत हो गई. 21 सिंतबर 2014 वाराणसी जेल में रेखा के डेढ़ महीने के बेटे ने दम तोड़ दिया. 10 मई 2013 को बुलंदशहर जिला में निरुद्ध 106 साल की रामकेली पत्नी स्वरूप की मौत हो गई. इसके अलावा 2016 में सीतापुर जेल में कुंदना पत्नी सुरजाना के एक साल के बेटे अनमोल ने इस साल दम तोड़ दिया.’
एक्ट में बदलाव से कम होगी भीड़
जीके अग्रवाल, एआईजी, एमपी जेल का कहना है, ‘जेल में से भीड़भाड़ को कम करने के लिए जेल के एक्ट में बदलाव करना होगा. बिना बदलाव किए और जेल में तैनात किए जाने वाले अधिकारी जब तक कुछ समय के लिए स्थायी नहीं होंगे तब तक जेल से भीड़ कम नहीं होगी. रहा सवाल कैदियों पर खर्च होने वाले बजट का तो वो राज्य के हिसाब से होता है. किसी राज्य में कम तो किस में ज्यादा होता है.’
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FIRST PUBLISHED : June 12, 2018, 17:08 IST