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बाढ़ में पति, घर, बच्चे को खोकर अनाथों को पाला, अब वे ही रखते हैं ख़्याल
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बाढ़ में पति, घर, बच्चे को खोकर अनाथों को पाला, अब वे ही रखते हैं ख़्याल

आशा, (image: gmb akash)
आशा, (image: gmb akash)

मैंने अपनी कोख से जन्में बच्चो को तो खो दिया पर उसके हिस्से का प्यार मैं हर दिन बांट देती हूं.

    ज़िंदगी में बहुत कुछ खोया, हर क़म पर. हद तो तब हुई जब ज़िंदगी ख़त्म होने को थी तब भी कुदरत ने इम्तेहान लेना बंद नहीं किया. दर्द भी ये जानकर रो देगा कि आशा ने जो खोया, उसे वापस कैसे पाया.

    पढ़िए, आशा की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी-

    'मेरे पति का देहांत मेरी आंखों के सामने, बाढ़ के दैरान हुआ. मैं उससे दस क़दम की दूरी पर थी. एक पेड़ उसके सिर पर गिरा और उसने उसी लम्हा दम तोड़ दिया. मैं जिस पानी में खड़ी थी, उसकी लाश भी वहीं गिर गई. मैं भी मर जाना चाहती थी. पर सात महीने की गर्भवती थी, नहीं मर सकी.

    पति नहीं रहा, घर के साथ माल-ओ-असबाब के नाम पर जो चार बर्तन थे वे उस रात भी बह गए. बार-बार मरने जी चाहता पर गर्भ में पल रही जान ने मरने दिया. इस बच्चे के लिए हमने 12 साल इंतज़ार किया था. दुनिया भर की ख़ाक छानने के बाद मेरा गर्भ ठहरा था. मुझे बच्चे के लिए जिंदा रहना ही था.

    रोज़ी रोटी, काम-धंधे के लिए शहर आई. हर दिन एक सदी सा कटता, तमाम संघर्षों के बाद मैंने बेटे को जन्म दिया. जन्म के बाद भी मुझे सुकून मयस्सर नहीं हुआ. एक और पहाड़ टूट पड़ा. दाई ने कहा, बच्चे को गंभीर परेशानी है. उसके शब्द मुझसे साफ-साफ कह रहे थे मैं उसकी मौत के लिए तैयार रहूं. सात दिन बाद उसका भी साथ छूट गया. उसके बाद मेरे पास किसी का साथ नहीं था. न ही एक पैसा था.



    तब मुझे अहसास हुआ, मरने के लिए भी पैसे की ज़रूरत होती है. लेकिन किसी ने मेरी मदद नहीं की. गली के कुछ अनाथ बच्चों ने अपनी गुल्लकों से मुझे पैसे दिए, उन्हीं के पैसों से मैं बच्चे की आखिरी बिदाई की रस्म निभा पाई.

    उसे सुपुर्द-ए-ख़ाक करने के बाद जब मैं झोपड़ी में लौटी तो दर्द इतना था कि रो भी न सकी. उस दिन से आज तक मैंने कभी उसे पलट के नहीं देखा, जिसे मैं खो चुकी हूं. उस दिन से अब तक 30 साल बीत गए. मैं हर दिन अपना पेट काटकर (खाने में से) एक अनाथ का पेट भरती हूं.

    अपनी कोख से जन्में बच्चे को तो खो दिया पर उसके हिस्से का प्यार हर दिन बांट देती हूं.

    पिछले पांच सालों से मुझे टीबी और दिल की बीमारी है. पर अब वे सारे अनाथ बढ़े हो गए हैं और मेरा ख़्याल रखते हैं. मैंने एक बच्चा खोया पर अब मेरे पास सैकड़ों हैं.'

    आशा की कहानी को हमने फेसबुक GMB Akash की इजाज़त से लिखा है.

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    Tags: Human Stories