पानी की कहानी: केपटाउन-बेंगलुरु में सूखा, अब दिल्ली भी दूर नहीं

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पानी की कहानी: केपटाउन-बेंगलुरु में सूखा, अब दिल्ली भी दूर नहीं

केपटाउन में सूखा, अब दिल्ली भी दूर नहीं

केपटाउन में सूखा, अब दिल्ली भी दूर नहीं

सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ बेंगलुरु ही नहीं देश के ऐसे 21 शहर हैं जो 2030 ...अधिक पढ़ें

    न्यूज18 हिंदी की खास मुहिम 'पानी की कहानी' में हम आपको मौजूदा जल संकट के बारे में बता रहे हैं. हम आपको देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद पानी की समस्याओं से रूबरू करा रहे हैं. इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि कैसे दुनिया एक बड़ी क्राइसिस के सामने खड़ी है. शहरों के पानी के  स्त्रोत खत्म होने लगे हैं और एक बड़ी आबादी गंभीर मुश्किल की जद में आ चुकी है. क्या हम वक्त रहते इस संकट का कोई हल निकाल पाएंगे? पढ़िए यह सोचने पर मजबूर कर देने वाली रिपोर्टः

    दक्षिण अफ्रीकी शहर केपटाउन के बाद भारत का बेंगलुरु दुनिया का वो दूसरा शहर होगा जहां जल्द ही पानी ख़त्म हो जाएगा. इस दिन को तकनीकी भाषा में 'डे जीरो' कहा जाता है, इसका मतलब उस दिन से है जब किसी शहर के पास उपलब्ध पानी के स्त्रोत ख़त्म हो जाएं और वो पानी की आपूर्ति के लिए पूरी तरह अन्य साधनों पर निर्भर हो जाए. सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ बेंगलुरु ही नहीं देश के ऐसे 21 शहर हैं जो 2030 तक 'डे जीरो' की कगार पर होंगे.

    केपटाउन की राह पर बेंगलुरु
    केप टाउन दक्षिण अफ्रीका के सबसे अमीर शहरों में से एक है लेकिन यहां पानी लगभग ख़त्म हो चुका है. शहर के प्रशासन ने ऐलान कर दिया है कि इस साल जून-जुलाई में शहर की टोंटियों में पानी आना बंद हो जाएगा. इस दौरान पूरे शहर में करीब 200 वॉटर कलेक्शन प्वाइंट बनाए जाएंगे, जहां से प्रत्येक व्यक्ति को रोजाना 25 लीटर पानी मिलेगा. हर कलेक्शन सेंटर पर पुलिस और सेना के जवान मौजूद रहेंगे. ये हालत सिर्फ केपटाउन की ही नहीं है साल 2050 तक दुनियाभर के 36 पर्सेंट शहर पानी की भयंकर समस्या से जूझने लगेंगे और पानी की मांग 80 फीसदी और बढ़ जाएगी. 2050 तक दुनिया भर के 200 शहर पानी की भयंकर किल्लत से जूझ रहे होंगे.

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    केप टाउन की तरह ही बेंगलुरु में भी जलस्तर तेजी से घट रहा है. कुछ ही सालों या फिर कुछ ही महीनों में यहां पानी की भयंकर समस्या पैदा हो सकती है. यहां 'डे जीरो' को रोकने की कोशिश होगी, जिसके तहत शहर के सभी टोंटियों को बंद करके पानी बचाया जाएगा. सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट (सीएसई) की डायरेक्टर सुनीता नारायण के मुताबिक बेंगलुरु की समस्या का पता इस तथ्य से लग जाता है कि यहां कुओं (बोरिंग) की संख्या बीते पांच सालों में 5,000 से सीधे 4.5 लाख पहुंच गई है. शहरों में ऐसा कोई सिस्टम बचा नहीं है जिससे ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज होने का कोई जरिया बचा हो. बेंगलुरु अपने हिस्से के महज आधे पानी को दोबारा इस्तेमाल में ला पाता है और बचा पानी नदियों या समुद्र में चला जाता है.

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    बेंगलुरु के अलावा पेइचिंग (चीन), मेक्सिको सिटी (मेक्सिको), सना (यमन), नैरोबी (केन्या), इस्तांबुल (टर्की), साउ पाउलो (ब्राजील), कराची (पाकिस्तान), काबुल (अफगानिस्तान) और ब्यूनस आइरस (आर्जेन्टीना) भी उन 10 शहरों में शामिल हैं, जो तेजी से 'डे जीरो' की तरफ बढ़ रहे हैं. इन सभी शहरों की समस्या यही है कि यहां ये गैरयोजनागत तरीके से विकसित हो रहे हैं और इसके लिए ग्राउंड वॉटर का बड़ी संख्या में इस्तेमाल हो रहा है. यहां जलस्तर तेजी से घट गया है लेकिन इसे रीचार्ज कैसे किया जाएगा इसके लिए न तो सरकार ही गंभीर है और न ही स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर जागरूकता फैलाई जा रही है.



    बेंगलुरु के आलावा भारत के ये 21 शहर भी हैं 'डे जीरो' लिस्ट में

    2050 तक दुनिया भर के 200 शहर 'डे जीरो' का सामना कर रहे होंगे और टॉप 10 में भारत के कम से चार शहर होंगे. इन चार शहरों में दिल्ली, जयपुर, चेन्नई और हैदराबाद फिलहाल सबसे ऊपर हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेश (WHO) की रिपोर्ट में इन चारों के आलावा गुरुग्राम, विजयवाड़ा, कोयंबटूर, अमरावती, सोलापुर, शिमला, कोच्चि, कानपुर, आसनसोल, धनबाद, मेरठ, फरीदाबाद, विशाखापत्तनम, मदुरै, मुंबई और जमशेदपुर शामिल हैं.

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    सरकारी डेटा के मुताबिक इन शहरों में पानी की मांग हर दिन बढ़ती जा रही है लेकिन उनकी उपलब्धता तेजी से घट रही है. सरकार ने साल 2014 में एक रिपोर्ट जारी कर बताया था कि देश के 32 बड़े शहरों में से 22 शहर पानी के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं. पानी की अनुपलब्धता के मामले में जमशेदपुर सबसे ऊपर है यहां 70% लोगों को ज़रुरत के जितना पानी नहीं मिल पाता है. इन 21 शहरों में जितनी मांग है उसके मुकाबले सिर्फ 30% पानी ही मिल पाता है. दिल्ली में मांग के मुकाबले सिर्फ 24% जबकि मुंबई को सिर्फ 17% पानी ही मिल पाता है. दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में तो सप्लाई के दौरान ही 30-40% पानी बर्बाद हो जाता है. हालांकि कुछ शहर ऐसे भी हैं जहां पानी की कुल मांग से ज्यादा सप्लाई है. 52% सरप्लस सप्लाई के साथ नागपुर इस लिस्ट में टॉप पर है जबकि 26% के साथ लुधियाना दूसरे नंबर पर है.

    क्यों बढ़ रही है परेशानी
    जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है, यहां दुनिया भर की 16% से ज्यादा आबादी रहती है. भले ही पृथ्वी का 70% भाग पानी से ढका हुआ हो लेकिन इसमें से 97% पानी खारा है. मीठा पानी सिर्फ पहाड़ों पर बर्फ के रूप में, झीलों, नदियों और भूमिगत स्रोतों में ही पाया जाता है. दुनिया भर में जितना मीठा पानी मौजूद है उसमें से भारत के पास सिर्फ 4% ही है.



    भारत में पानी के लिए लोग नदियों और भूमिगत जल पर ही निर्भर हैं. बेंगलुरु की बात करें तो किसी समय भारत की गार्डन सिटी के नाम से मशहूर ये शहर कई बड़ी झीलों के पास बसाया गया था. अभी भी इस शहर में करीब 200 झीलों इन झीलों में पानी को इकट्ठा करने की योजना थी जिससे पानी बचाया जा सके और ग्राउंडवाटर भी रीचार्ज होता रहे. हालांकि बढ़ते शहरीकरण और अपार्टमेंट्स की बढ़ती संख्या के चलते झीलें प्रदूषित रहती हैं. शहर की सबसे चर्चित झील बेलंदूर काफी समय से प्रदूषण के कारण परेशानी का सबब बनी हुई है और हालत इतने बुरे हैं कि अब तो आए दिन इसमें आग लगी रहती है.

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    द नेचर कंजरवेंसी संस्था से जुड़े वैज्ञानिक रॉबर्ट मैकडॉनल्ड ने जल संकट पर एक रिपोर्ट तैयार की है. एक अंग्रेजी पत्रिका में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2050 तक लॉस एंजिलिस, जयपुर और दार ए सलाम सबसे भयानक स्तर पर सतह पर जल की कमी का सामना करेंगे. यह औसतन 100 मिलियन क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष बढ़ेगा. रॉबर्ट इस रिपोर्ट में बताते हैं कि भारतीय शहरों ने ग्राउंडवाटर रीचार्ज सिस्टम पूरी तरह बर्बाद हो गया है. पक्के मकानों और सड़कों के चलते अब झीलें-तालाब बचे नहीं हैं, बारिश और घरों से बचा पानी पक्की नालियों के रास्ते सीधे नदियों तक पहुंचता है और वहां से समुद्र तक. नदियों-तालाबों के प्रदूषित हो जाने से और बारिश के भी साल दर साल कम होते जाने से कृषि के लिए भी बड़े पैमाने पर ग्राउंडवाटर का इस्तेमाल किया जा रहा है. इन सभी शहरों में ग्राउंडवाटर लेवल अब तक की सबसे बुरी स्थिति में है. दिल्ली और एनसीआर के इलाकों में समर्सवेल (बोरिंग) ने ग्राउंडवाटर को भरी नुकसान पहुंचाया है.



    क्या बेंगलुरु-दिल्ली के पास कोई रास्ता है ?
    भारतीय विज्ञान संस्थान में पर्यावरणविद टीवी रामचंद्र बताते हैं कि अगर शहरीकरण ऐसे ही चलता रहा और बारिश के पानी के संचयन पर ध्यान नहीं दिया गया तो हालत और भी बुरे हो सकते हैं. रामचंद्र के मुताबिक 2020 तक बेंगलुरु का तो 94 प्रतिशत हिस्सा कंक्रीट में बदल जाएगा. पहले से ही यहां के करीब 1 करोड़ लोग बोरवेल और टैंकर्स पर निर्भर करते है. शहर को मिलने वाले पानी का बड़ा हिस्सा कावेरी नदी से मिलता है लेकिन इस पर भी तमिलनाडु से विवाद चल रहा है.

    ऐसे ही दिल्ली पानी की ज़रूरतों के लिए पंजाब-हरियाणा पर निर्भर है. दोनों शहर अगर बारिश के पानी का ठीक से संचयन करें तो बेंगलुरु में 10 लाख और दिल्ली में करीबी-करीब इससे दुगने लोगों की पानी से जुड़ी ज़रूरतें पूरी हो जाएगी. रामचंद्रन प्रशासन की आलोचना करते हुए कहते हैं कि सरकार की तरफ से लोगों को साफ पानी कम दरों पर मिलता है, इसलिए पानी बचाने की उन्हें जरूरत नहीं लगती इसके अलावा सरकार बारिश का पानी बचाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए भी गंभीर नज़र नहीं आती.

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    Tags: Paani Ki Kahaani

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