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लोकसभा चुनाव 2019: ये है आरएसएस, बीजेपी का दलित प्लान!
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लोकसभा चुनाव 2019: ये है आरएसएस, बीजेपी का दलित प्लान!

मेरठ में बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में दलितों, पिछड़ों पर फोकस रहा
मेरठ में बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में दलितों, पिछड़ों पर फोकस रहा

बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोशिश ये है कि किसी भी सूरत में कास्ट लाइन मजबूत न होने पाए, क्योंकि ऐसा होने पर स ...अधिक पढ़ें

    साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को 2014 की तरह फतह करने के लिए सत्तारूढ़ बीजेपी ने कमर कस ली है. यूपी में सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी की मुश्किल बढ़ाता नजर आ रहा है. बीजेपी गोरखपुर जैसा अपना गढ़ गंवा बैठी. फूलपुर और कैराना में भी उसे हार का सामना करना पड़ा. ऐसे में पार्टी ने दलितों, पिछड़ों पर फोकस करना शुरू कर दिया है. मेरठ में हुई पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति  में इसीलिए ज्यादातर नेता खुद को दलित हितैषी साबित करने में जुटे रहे. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने एक बूथ पर 20 यूथ जोड़ने का मंत्र दिया. साथ ही ये भी कहा कि इसमें से 10 दलित और पिछड़े वर्ग से होने चाहिए. सवाल ये है कि क्या दलितों, पिछड़ों को लुभाने की मशक्कत कामयाब हो पाएगी?

    एससी/एसटी एक्ट पर 20 मार्च को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित संगठन बीजेपी पर इसे कमजोर करने की साजिश का आरोप लगा रहे थे. लेकिन, मोदी सरकार ने एससी/एसटी एक्ट पर संशोधन पास करवाकर पुरानी स्थिति बहाल कर दी है. चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि इससे बीजेपी के खिलाफ कथित तौर पर उपजी दलितों की नाराजगी कम होगी. भीम आर्मी जैसे संगठन गतिविधियां बढ़ा रहे हैं. दलितों में मायावती की पकड़ अभी भी मजबूत मानी जा रही है. इसलिए दलितों को लेकर बीजेपी चुप नहीं बैठने वाली है.खासतौर पर उसका ध्यान गैर जाटव दलितों पर है.

    हालांकि दलित चिंतक मानते हैं कि भीमा कोरेगांव, सहारनपुर और मेरठ जैसी घटनाओं से बीजेपी की छवि दलित विरोधी बनी हुई है. सत्तारूढ़ दल के खिलाफ हुए दलित ध्रुवीकरण ने एक बार फिर से बसपा सुप्रीमो मायावती को ताकतवर बना दिया है. दलित बनाम सवर्ण जैसा माहौल बना है, जिसे विपक्ष भुनाने की कोशिश में जुटा हुआ है. दूसरी ओर बीजेपी के लिए दलितों को गोलबंद करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है. संघ की कोशिश ये है कि सामाजिक समरसता अभियान के जरिए हिंदुओं के एकत्रीकरण की बात की जाए. ताकि कास्ट लाइन मजबूत न होने पाए.

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    क्योंकि कास्ट लाइन मजबूत होने से बीजेपी को नुकसान होता है. चुनावी विश्लेषक बताते हैं कि दलित और ओबीसी वोटों में सेंधमारी के बिना बीजेपी सिर्फ अपने कोर वोटरों (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य) के सहारे सत्ता तक नहीं पहुंच सकती. इसीलिए बीजेपी जम्मू-कश्मीर के उन दलितों का भी मुद्दा उठा रही है जिन्हें अनुच्छेद 35ए की वजह से अब तक नागरिकता नहीं मिल पाई.

    दलितों को जोड़ने के लिए समरसता अभियान
    संघ नेताओं का मानना है कि समरसता अभियान के रास्ते ही हिंदू वोटों में विभाजन को रोका जा सकता है. आरएसएस की वेबसाइट पर समरसता कार्यक्रम की एक फोटो है, जिसमें बीआर आंबेडकर, ज्योतिबा फुले और गौतम बुद्ध की फोटो लगी है. लिखा है 'समरसता मंत्र के नाद से हम भर देंगे सारा त्रिभुवन.'

    संघ प्रमुख मोहन भागवत का नागपुर के एक कार्यक्रम में दिया गया बयान इसी लाइन को मजबूत करता हुआ दिखता है. जिसमें उन्होंने कहा "अयोग्य बातें त्यागनी होंगी. हिंदू धर्म कोई जाति-भेद नहीं मानता, हम सब भाई-भाई हैं... इसे व्यवहार में भी उतारना होगा, संघ यही काम कर रहा है. भेदों के आधार पर व्यवहार, यह विकृति है. समाज को एक सूत्र में बांधने के लिए डॉ. आंबेडकर जी के बंधुभाव का दृष्टिकोण अपनाना होगा. संघ समतायुक्त, शोषण-मुक्त समाज निर्माण करने का काम कर रहा है. लेकिन यह काम केवल अकेले संघ का नहीं है, सारे समाज को इसमें हाथ बंटाना है."

    पंचकूला के एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी ने कहा "जाति के आधार पर मनुष्यों का आपस में भेदभाव करना धर्म के मूल तत्वों के खिलाफ है. जातिवाद ने समाज का बड़ा नुकसान किया है, इसलिए हमें इन संकीर्णताओं से ऊपर उठ कर देशहित में सोचना चाहिए."

    संघ छुआछूत के खिलाफ अभियान चला रहा है. कुछ माह पहले ही स्वयंसेवकों ने तेलंगाना प्रांत में दलितों के मान-सम्मान के लिए एक मुहिम चलाई थी. जिसके फलस्वरूप यहां के 200 गावों में एक श्मशान, मंदिर में सबको प्रवेश एवं होटल में सभी के लिए समान गिलास रखना संभव हुआ है. राजस्थान में भी संघ ने एक कुंआ, एक श्मशान तथा मंदिर प्रवेश को लेकर काम किया है.

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    भीमराव आंबेडकर का सहारा
    देश में अनुसूचित जाति की आबादी 16.6 और अनुसूचित जनजाति की 8.6 फीसदी है. इसमें पैठ बनाने के लिए बीजेपी और संघ डॉ. भीमराव आंबेडकर का सहारा ले रहे हैं. इस साल फरवरी में ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उत्तर प्रदेश में तीन बड़े कार्यक्रम किए हैं, जिनमें दलितों पर फोकस था.

    पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के संघ समागम में भागवत ने महात्मा बुद्ध का भी जिक्र किया, जिन्हें इन दिनों दलित अपना आराध्य मानते हैं. भागवत ने कहा "दुनिया में भारत की श्रेष्ठता के लिए राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर एवं विवेकानन्द जैसे महापुरुषों का योगदान रहा है."

    इसके बाद आगरा में समरसता संगम किया गया. दलित बहुल क्षेत्र के कारण यहीं से बसपा प्रमुख मायावती चुनावी शंखनाद करती रही हैं. आगरा के कार्यक्रम में रविदास, कबीरदास और गौतम बुद्ध के फोटो लगाए गए थे.

    फिर मेरठ के 'राष्ट्रोदय' कार्यक्रम में संघ ने छुआछूत मिटाने पर जोर दिया. जातीय भेद मिटाने का आह्रवान किया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़ते जातीय संघर्ष को लेकर यह कवायद महत्वपूर्ण मानी जाती है. आरएसएस में मेरठ प्रांत के प्रचार प्रमुख अजय मित्तल दावा करते हैं "राष्ट्रोदय में करीब 25 हजार दलित भी आए थे. जिसमें सहारनपुर वाले भी शामिल थे."

    बीजेपी ने अपने सांसदों, विधायकों को डॉ. बीआर आंबेडकर जयंती मनाने के लिए कहा था. दलितों के यहां जाकर यह बताने के लिए कहा है कि सरकार उनके कल्याण के लिए क्या-क्या कर रही है. सियासी जानकारों का कहना है कि जिस तरह से बीजेपी ने यह मिथक तोड़ा कि महात्मा गांधी केवल कांग्रेस के नहीं हैं उसी तरह वह आंबेडकर को लेकर भी काम कर रही है, ताकि दलितों की खैरख्वाह बनने वाली कोई पार्टी आंबेडकर पर अपना एकाधिकार न समझे.

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    कैसे टूटेगी दलित-मुस्लिम एकता?
    गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा के उपचुनावों में गठबंधन की वजह से दलित-मुस्लिम एकता देखने को मिली थी. यह बीजेपी के लिए बड़ी चिंता का विषय हैं. सूत्रों का कहना है कि बाबा साहब आंबेडकर का सबसे बड़ा विरोधी मुस्लिमों को बताकर दलित-मुस्लिम गोलबंदी को तोड़ने की कोशिश हो सकती है.

    आरक्षण पर वीएचपी का मत
    विपक्ष इस बात के प्रचार में जुटा हुआ है कि बीजेपी और आरएसएस मिलकर आरक्षण को खत्म कर देंगे. हमने इस बारे में विश्व हिंदू परिषद (VHP) में प्रवीण तोगड़िया की जगह लेने वाले एडवोकेट आलोक कुमार से बात की. उन्होंने कहा "विश्व हिंदू परिषद का स्पष्ट मत है कि सामाजिक विषमता मिटाने के लिए अभी आरक्षण की आवश्यकता है. आरक्षण चलते रहना चाहिए. हम इसे निश्चित रूप से जारी रखेंगे. अस्पृश्यता हिंदुत्व के खिलाफ है."

    आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपना लिया था, फिर उन्हें आपलोग क्यों अपना रहे हैं? जवाब में कुमार कहते हैं "विश्व हिंदू परिषद भारत में जन्म लेने वाले सभी धर्मों का संगठन है. बौद्ध पंथ भी भारत का उतना ही है जितना वैदिक धर्म. इसलिए बाबा साहब ने कुछ ऐसा काम नहीं किया जो देश को नुकसान पहुंचाता हो. उन्होंने जो जातियों को नष्ट करने की बात कही थी, वह आज भी प्रासंगिक है."

    क्या कहती है दलित सांसदों की नाराजगी
    इन सब कोशिशों के बावजूद यह नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले, छोटेलाल खरवार, उदित राज, यशवंत सिंह और अशोक दोहरे दलित उत्पीड़न के मसले पर पार्टी से नाराजगी जता चुके हैं. दलितों का एक धड़ा आरोप लगा रहा है कि इस वर्ग के उत्पीड़न के लिए बीजेपी और आरएसएस जिम्मेदार हैं. लेकिन, संघ ने अपने एक बयान में स्पष्ट किया है कि "जाति के आधार पर किसी भी भेदभाव अथवा अत्याचार का संघ सदा से विरोध करता है. दलित अत्याचारों को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों का कठोरता से पालन होना चाहिए."

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    'बहनजी: द राइज एंड फॉल ऑफ मायावती' नामक किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस कहते हैं "राहुल गांधी के मंदिर जाने पर बीजेपी और हिंदूवादी संगठनों में जो रिएक्शन होता है वही बीजेपी नेताओं के आंबेडकर-आंबेडकर करने से दलितों और दलित संगठनों में होता है. बीजेपी उसी समय दलितों में सेंध लगा सकती है जब दलितों को यह लगे कि मायावती जीत नहीं सकतीं. फिलहाल बसपा-सपा गठबंधन के बाद उसे लग रहा है कि मायावती चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं."

    Tags: BJP, Dalit, RSS