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अच्छा और साफ बोलना = अच्छा नेता??
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अच्छा और साफ बोलना = अच्छा नेता??

राहुल गांधी
राहुल गांधी

राजनीति में अच्छा, साफ और सही उच्चारण के साथ बोलना कितना महत्व रखता है. यह एक सवाल है जिसका कोई एक जवाब नहीं है. राजनीत ...अधिक पढ़ें

    पिछले दिनों कर्नाटक चुनाव की एक रैली में राहुल गांधी की ज़बान विश्वेश्वरय्या कहते हुए लड़खड़ा गई. बदले में पीएम मोदी ने उन्हें चुनौती दे डाली की वह  15 मिनट के भाषण में कम से कम पांच बार विश्वेश्वरय्या का नाम ले दें. जाहिर तौर पर पीएम मोदी ने गांधी की फिसलती ज़बान पर चुटकी लेते हुए यह बात कही थी. ऐसे में सवाल यह उठने लगा कि क्या अच्छाे उच्चारण या उससे भी बड़ी बात अच्छा और साफ बोलने से ही कोई अच्छा नेता बनता है.

    इसके बारे में सोचने पर ज़हन में सबसे पहले आते हैं महात्मा गांधी जिन्हें स और श बोलने में दिक्कत पेश आती थी. वह शीघ्र को सीघ्र बोल देते थे और सोचिए को शोचिए. लेकिन इसके बावजूद यह बताने की जरूरत तो नहीं है कि उनके भाषणों या कहें कि उनकी बातों को सुनने के लिए लोग कहां कहां से आते थे. जवाहर लाल नेहरू तो अपने भाषण देने की कला के लिए जाने ही जाते थे. लेकिन उनकी बेटी  इंदिरा गांधी को उनके समकालीन 'गूंगी गुड़िया' कहा करते थे. यह अलग बात है कि इसी गूंगी गुड़िया ने आगे चलकर कई बड़े बड़े राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय नेताओं की बोलती बंद कर दी थी. वहीं उन्हीं के बेटे राजीव गांधी की ज़बान कई बार लड़खड़ा जाती थी. बताया जाता है कि एक बार उन्होंने शोरगुल को गुलशोर कह दिया था. वह 'मुबारकबाद' नहीं 'मुबारक' देते थे.

    trump, karnataka election 2018
    बापू को स और श बोलने में दिक्कत पेश आती थी


    अब बात करते हैं मौजूदा दौर के नेताओं की. समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के उच्चारण को लेकर तमाम तरह की बातें की जाती हैं. कई बार उनसे जुड़े मजाक या चुटकुले भी फोन पर भेजे जाते हैं. लेकिन इस बात को हम दरकिनार नहीं ही कर सकते न कि इसके बावजूद देश के सबसे बड़े राज्य में उनका बोलबाला है. 2017 के चुनाव में इसमें थोड़ी कमी आई है लेकिन यह भी सोचने वाली बात है कि 'अगड़म बगड़म' बोलने वाले इस नेता की पार्टी को 2 करोड़ से ज्यादा वोट मिले थे. बोलने में माहिर लेकिन उच्चारण का ध्यान नहीं रखने वाले एक नेता लालू प्रसाद यादव हैं जिनके बोलने की अदा ही मानो उनकी सबसे बड़ी और असल संपत्ति है.

    वैसे अभिनेता से नेता बने कई चेहरों भी उबड़ खाबड़ भाषण देने के लिए जाने गए हैं. राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई बताते हैं कि कृष्ण के रोल से लोकप्रिय हुए नीतीश भारद्वाज जब राजनीति में आए तो उनके भाषण उतने दमदार नहीं थे, जितने उनके दिए गीता के संदेश होते थे. वहीं जया प्रदा को भी ऐसे ही संघर्ष करना पड़ा.

    trump, karnataka election 2018
    ट्रंप भाषणों में कई बार गलतियों कर बैठते हैं


    राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई मानते हैं कि गलतियों या भाषणों का आपके राजनीतिक ग्राफ से लेना देना होता है. कोई बड़ा या लोकप्रिय नेता जैसे बोले, उसे वैसे ही स्वीकार कर लिया जाता है. वहीं अगर कोई गलती किसी कम लोकप्रिय या संघर्षरत नेता से होती है, तो उसके लिए जवाब देना मुश्किल होता है. लेकिन फिर सवाल यह उठता है कि बड़ा नेता कोई शुरू से तो नहीं होता, वह तो धीरे धीरे बनता है. किदवई कहते हैं कि ऐसे में जरूरी है कि राहुल गांधी जैसे नेता गलतियों से घबराएं नहीं. वह गलती करने से डरते हैं इसलिए गलती बार बार करते हैं. अगर निडर होकर अपनी बात कहेंगे, गलती की परवाह किए बगैर तो ऐसी नौबत कम ही आएगी. राजनीतिक करियर के शुरूआती पड़ाव पर इस तरह की चिंता न ही की जाए तो बेहतर होता है.

    वैसे ज़बान फिसलने या भाषणों में गलती करने के मामले में इन दिनों सबसे आगे डोनाल्ड ट्रंप चल रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की भाषणों में गलतियों की इतनी लंबी फेहरिस्त है कि सबका वर्णन करना मुश्किल है. हर दिन अमेरिकी अखबारों में ट्रंप के जबान फिसलने या किसी विषय के बारे में जानकारी के बगैर बोलने की खबरें आती हैं. अफ्रीकी देशों के एक समूह के अमेरिकी दौरे पर ट्रंप ने लंच का आयोजन किया. इसमें स्वागत करने के दौरान उन्होंने नामीबिया को नांबिया कहा और बार बार कहते चले गए. इससे पहले कैरिबियाई आयलैंड प्योर्तो रिको में बाढ़ पीड़ितों को संबोधित करते हुए ट्रंप ने बार बार इस द्वीप का नाम गलत लिया. वैसे तो कहा तो यह भी जाता है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन भी गलतियों के लिए जाने जाते थे. कहते हैं कि इंदिरा गांधी को उन्होंने 'महात्मा गांधी की महान बेटी' कह दिया था. हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है इसकी पुष्टि कहीं से नहीं हो सकी है.

    Tags: Karnataka Election 2018