मिशन 2019 में जुटा RSS, बीजेपी की जीत के लिए बनाई ये रणनीति
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोशिश ये है कि सामाजिक समरसता अभियान के जरिये हिंदुओं के एकीकरण की बात की जाए, ताकि कास्ट ला ...अधिक पढ़ें
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साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को 2014 की तरह फतह करने के लिए सत्तारूढ़ बीजेपी ने कमर कस ली है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है. पिछले हफ्ते सूरजकुंड (फरीदाबाद) में संघ और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने सभी राज्यों के अपने संगठन मंत्रियों की क्लास लेकर विजयश्री हासिल करने के टिप्स दिए. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यहां 16 जून को सात घंटे तक क्लास ली. संघ के सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी, सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल और दत्तात्रेय होसबोले भी कार्यक्रम में मौजूद रहे.
इसमें सांसदों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने की बात हुई, ताकि इससे जमीनी हकीकत का पता चले और उसी हिसाब से 2019 की तैयारियों को अंजाम दिया जा सके. लेकिन बीजेपी और संघ के सामने सांसदों के कामकाज से भी बड़ी चिंता का विषय विपक्ष का गठबंधन है. दरअसल सपा, बसपा जैसी पार्टियों के एक साथ आने की वजह से बीजेपी गोरखपुर जैसा अपना गढ़ गंवा बैठी. फूलपुर और कैराना में भी उसे हार का सामना करना पड़ा.
बीजेपी के लिए कैसा होगा 2019
उना, भीमा कोरेगांव, सहारनपुर और मेरठ जैसी घटनाओं से बीजेपी की छवि दलित विरोधी बनी है. सत्तारूढ़ दल के खिलाफ हुए दलित ध्रुवीकरण ने एक बार फिर से बसपा सुप्रीमो मायावती को ताकतवर बना दिया है. दलित बनाम सवर्ण जैसा माहौल बना है, जिसे विपक्ष भुनाने की कोशिश में जुटा हुआ है. ऐसे में संघ की कोशिश ये है कि सामाजिक समरसता अभियान के जरिए हिंदुओं के एकत्रीकरण की बात की जाए. ताकि कास्ट लाइन मजबूत न होने पाए. ऐसा होने पर बीजेपी को नुकसान होता है. चुनावी विश्लेषक बताते हैं कि दलित और ओबीसी वोटों में सेंधमारी के बिना बीजेपी सिर्फ अपने कोर वोटरों (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य) के सहारे सत्ता तक नहीं पहुंच सकती.
दलितों को जोड़ने के लिए समरसता अभियान
ऐसे में संघ के नेताओं का मानना है कि समरसता अभियान के रास्ते ही हिंदू वोटों में विभाजन को रोका जा सकता है. आरएसएस की वेबसाइट पर समरसता कार्यक्रम की एक फोटो है, जिसमें बीआर आंबेडकर, ज्योतिबा फुले और गौतम बुद्ध की फोटो लगी है. लिखा है 'समरसता मंत्र के नाद से हम भर देंगे सारा त्रिभुवन.'
संघ प्रमुख मोहन भागवत का नागपुर के एक कार्यक्रम में दिया गया बयान इसी लाइन को मजबूत करता हुआ दिखता है. जिसमें उन्होंने कहा "अयोग्य बातें त्यागनी होंगी. हिंदू धर्म कोई जाति-भेद नहीं मानता, हम सब भाई-भाई हैं... इसे व्यवहार में भी उतारना होगा, संघ यही काम कर रहा है. भेदों के आधार पर व्यवहार, यह विकृति है. समाज को एक सूत्र में बांधने के लिए डॉ. आंबेडकर जी के बंधुभाव का दृष्टिकोण अपनाना होगा. संघ समतायुक्त, शोषण-मुक्त समाज निर्माण करने का काम कर रहा है. लेकिन यह काम केवल अकेले संघ का नहीं है, सारे समाज को इसमें हाथ बंटाना है."
पंचकूला के एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी ने कहा "जाति के आधार पर मनुष्यों का आपस में भेदभाव करना धर्म के मूल तत्वों के खिलाफ है. जातिवाद ने समाज का बड़ा नुकसान किया है, इसलिए हमें इन संकीर्णताओं से ऊपर उठ कर देशहित में सोचना चाहिए."
हिंदुओं को एक रखने के लिए समरसता सम्मेलन (rss)
संघ छुआछूत के खिलाफ अभियान चला रहा है. कुछ माह पहले ही स्वयंसेवकों ने तेलंगाना प्रांत में दलितों के मान-सम्मान के लिए एक मुहिम चलाई थी. जिसके फलस्वरूप यहां के 200 गावों में एक श्मशान, मंदिर में सबको प्रवेश एवं होटल में सभी के लिए समान गिलास रखना संभव हुआ है. राजस्थान में भी संघ ने एक कुंआ, एक श्मशान तथा मंदिर प्रवेश को लेकर काम किया है.
भीमराव आंबेडकर का सहारा
देश में अनुसूचित जाति की आबादी 16.6 और अनुसूचित जनजाति की 8.6 फीसदी है. इसमें पैठ बनाने के लिए बीजेपी और संघ डॉ. भीमराव आंबेडकर का सहारा ले रहे हैं. फरवरी में ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उत्तर प्रदेश में तीन बड़े कार्यक्रम किए हैं, जिनमें दलितों पर फोकस था.
पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के संघ समागम में भागवत ने महात्मा बुद्ध का भी जिक्र किया, जिन्हें इन दिनों दलित अपना आराध्य मानते हैं. भागवत ने कहा "दुनिया में भारत की श्रेष्ठता के लिए राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर एवं विवेकानन्द जैसे महापुरुषों का योगदान रहा है."
इसके बाद आगरा में समरसता संगम किया गया. दलित बहुल क्षेत्र के कारण यहीं से बसपा प्रमुख मायावती चुनावी शंखनाद करती रही हैं. आगरा के कार्यक्रम में रविदास, कबीरदास और गौतम बुद्ध के फोटो लगाए गए थे.
फिर मेरठ के 'राष्ट्रोदय' कार्यक्रम में संघ ने छुआछूत मिटाने पर जोर दिया. जातीय भेद मिटाने का आह्रवान किया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़ते जातीय संघर्ष को लेकर यह कवायद महत्वपूर्ण मानी जाती है. आरएसएस में मेरठ प्रांत के प्रचार प्रमुख अजय मित्तल दावा करते हैं "राष्ट्रोदय में करीब 25 हजार दलित भी आए थे. जिसमें सहारनपुर वाले भी शामिल थे."
आंबेडकर का सियासी इस्तेमाल!
बीजेपी ने अपने सांसदों, विधायकों को डॉ. बीआर आंबेडकर जयंती मनाने के लिए कहा था. दलितों के यहां जाकर यह बताने के लिए कहा है कि सरकार उनके कल्याण के लिए क्या-क्या कर रही है. सियासी जानकारों का कहना है कि जिस तरह से बीजेपी ने यह मिथक तोड़ा कि महात्मा गांधी केवल कांग्रेस के नहीं हैं उसी तरह वह आंबेडकर को लेकर भी काम कर रही है, ताकि दलितों की खैरख्वाह बनने वाली कोई पार्टी आंबेडकर पर अपना एकाधिकार न समझे. राम मंदिर का मुद्दा भी जिंदा रखा जाएगा. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के जरिए भी मंदिर के लिए माहौल बनाने की कोशिश की जाएगी.
कैसे टूटेगी दलित-मुस्लिम एकता?
गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा के उपचुनावों में गठबंधन की वजह से दलित-मुस्लिम एकता देखने को मिली थी. यह बीजेपी के लिए बड़ी चिंता का विषय हैं. सूत्रों का कहना है कि बाबा साहब आंबेडकर का सबसे बड़ा विरोधी मुस्लिमों को बताकर दलित-मुस्लिम गोलबंदी को तोड़ने की कोशिश हो सकती है.
आरक्षण पर वीएचपी का मत
विपक्ष इस बात के प्रचार में जुटा हुआ है कि बीजेपी और आरएसएस मिलकर आरक्षण को खत्म कर देंगे. हमने इस बारे में विश्व हिंदू परिषद (VHP) में प्रवीण तोगड़िया की जगह लेने वाले एडवोकेट आलोक कुमार से बात की. उन्होंने कहा "विश्व हिंदू परिषद का स्पष्ट मत है कि सामाजिक विषमता मिटाने के लिए अभी आरक्षण की आवश्यकता है. आरक्षण चलते रहना चाहिए. हम इसे निश्चित रूप से जारी रखेंगे. अस्पृश्यता हिंदुत्व के खिलाफ है."
आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपना लिया था, फिर उन्हें आपलोग क्यों अपना रहे हैं? जवाब में कुमार कहते हैं "विश्व हिंदू परिषद भारत में जन्म लेने वाले सभी धर्मों का संगठन है. बौद्ध पंथ भी भारत का उतना ही है जितना वैदिक धर्म. इसलिए बाबा साहब ने कुछ ऐसा काम नहीं किया जो देश को नुकसान पहुंचाता हो. उन्होंने जो जातियों को नष्ट करने की बात कही थी, वह आज भी प्रासंगिक है."
राम मंदिर मसले का होगा सियासी इस्तेमाल
क्या कहती है दलित सांसदों की नाराजगी
इन सब कोशिशों के बावजूद यह नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले, छोटेलाल खरवार, उदित राज, यशवंत सिंह और अशोक दोहरे दलित उत्पीड़न के मसले पर पार्टी से नाराज हैं. दलितों का एक धड़ा आरोप लगा रहा है कि इस वर्ग के उत्पीड़न के लिए बीजेपी और आरएसएस जिम्मेदार हैं. लेकिन, संघ ने अपने एक बयान में स्पष्ट किया है कि "जाति के आधार पर किसी भी भेदभाव अथवा अत्याचार का संघ सदा से विरोध करता है. दलित अत्याचारों को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों का कठोरता से पालन होना चाहिए."
सांसद उदित राज ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के सामने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम (एससी-एसटी कानून) में बदलाव पर कड़ी नाराजगी जताई है. उदित राज का आरोप है कि पार्टी इस मामले में कुछ नहीं कर रही है इसके चलते दलित समुदाय बीजेपी से नाराज है. उनके मुताबिक एससी-एसटी मुद्दे को लेकर दलित समुदाय अगले चुनाव में वोट देने के मूड में दिखाई नहीं दे रहा है.
'बहनजी: द राइज एंड फॉल ऑफ मायावती' नामक किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस कहते हैं "राहुल गांधी के मंदिर जाने पर बीजेपी और हिंदूवादी संगठनों में जो रिएक्शन होता है वही बीजेपी नेताओं के आंबेडकर-आंबेडकर करने से दलितों और दलित संगठनों में होता है. बीजेपी उसी समय दलितों में सेंध लगा सकती है जब दलितों को यह लगे कि मायावती जीत नहीं सकतीं. फिलहाल बसपा-सपा गठबंधन के बाद उसे लग रहा है कि मायावती चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं."
बीजेपी सांसद उदित राज
क्या है आरएसएस का मुस्लिम प्लान?
दलितों को लुभाने के लिए जहां समरसता अभियान का सहारा है तो पिछड़ों के लिए उसके नेताओं का. लेकिन, आरएसएस का मुस्लिम प्लान क्या है? माना जाता है कि मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं देता. इसलिए मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश जारी है. इसके लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच काम कर रहा है. संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार के पास यही काम है.
संघ का मानना है कि 'भारत में रहने वाला ईसाई या मुस्लिम भारत के बाहर से नहीं आया है. वे सब यहीं के हैं. हमारे सबके पुरखे एक ही हैं. किसी कारण से मजहब बदलने से जीवन दृष्टि नहीं बदलती है. इसलिए उन सभी की जीवन दृष्टि भारत की यानी हिंदू ही है.'
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संयोजक इस्लाम अब्बास के मुताबिक "यह आम धारणा है कि आरएसएस मुस्लिम विरोधी है. हम इस धारणा को तोड़कर लोगों को समझाने का काम कर रहे हैं. इस समय 24 राज्यों के 325 शहरों में हमारी इकाइयां हैं. लाखों मुस्लिम समर्थक हैं. हम छह प्रकोष्ठों (गौ, मौलाना, युवा, छात्र, सेवा, महिला) के जरिए मुस्लिमों को आरएसएस से जोड़ रहे हैं."
"हमारा एजेंडा है कि आतंकवाद बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. भारतीय संस्कार को अपनाते हुए देश की सेवा करेंगे. हिंदू भाईयों की कद्र करेंगे. श्रीराम का जन्म स्थान एक ही हो सकता है. वह अयोध्या है. यह हम मुस्लिमों को समझा रहे हैं. जब बदलाव किया जाता है तो रिएक्शन होता है. हम भी मुस्लिमों को समझा रहे हैं तो यह हमारे लिए चुनौती है. लेकिन एक दिन सभी को समझा लेंगे ऐसा विश्वास है."
आरएसएस प्रचारक इंद्रेश कुमार
जम्मू-कश्मीर मसला
संघ और बीजेपी दोनों इस कोशिश में जुटे हुए हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान किसी भी सूरत में क्षेत्रवाद न हावी होने पाए. राष्ट्रीयता की बात हो. जम्मू-कश्मीर को लेकर संघ इसीलिए पार्टी पर दबाव बना रहा था क्योंकि धारा 370 का मसला हाशिए पर जा रहा था. महबूबा के साथ गठबंधन को जनता सहज नहीं मान रही थी. माना जाता है कि कठुआ मामले के बाद बीजेपी खासकर जम्मू रीजन में पहले से मजबूत हुई है. हिंदू-मुस्लिम वोटों का स्पष्ट विभाजन हो गया है. जम्मू कश्मीर मामले ने पहले भी बीजेपी को फायदा पहुंचाया है और इस बार भी इसी उम्मीद में भावनात्मक दांव खेला गया है. शनिवार को अमित शाह जम्मू-कश्मीर जा रहे हैं.
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