अप्वॉइंटमेंट के 7 साल बाद UP के 14 जजों को मिला कोर्ट रूम और काम
पूरा मामला 2001 में हुए लिखित परीक्षा के बाद नियुक्ति प्रक्रिया विवाद से जुड़ा है. साल 2001 में मैनपुरी जिले के 14 न्य ...अधिक पढ़ें
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उत्तर प्रदेश के 14 जजों को नियुक्ति के सात साल बाद आखिरकार बैठने की जगह मिल गई. सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी 14 जजों को कोर्ट रूम अलॉट करने के आदेश दिए हैं. कोर्ट रूम मिलने के बाद इन जजों को अब केस भी मिलने लगेंगे.
दरअसल, पूरा मामला 2001 में हुए लिखित परीक्षा के बाद नियुक्ति प्रक्रिया विवाद से जुड़ा है. साल 2001 में मैनपुरी जिले के 14 न्यायिक अधिकारी के पदों के लिए आवेदन मांगे गए थे. आवेदन तो 14 जजों के लिए थे, लेकिन 28 जजों को नियुक्त कर लिया गया. जजों की नियुक्ति को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने 2008 में फैसला दिया. कोर्ट ने पिछली परीक्षा को रद्द कर नए सिरे से परीक्षा कराने को कहा.
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्यादातर सफल अभ्यार्थियों की आंसर शीट की जांच के बाद पाया कि इनकी कोई चेक लिस्ट या मेरिट लिस्ट नहीं तैयार की गई थी. कुछ अभ्यार्थियों को तो ओवर-राइटिंग पर भी मार्क्स दिए गए थे. जबकि ज्यादातर परीक्षाओं पर ओवर राइटिंग पर मार्क्स काट दिए जाते हैं.
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कुछ अभ्यार्थियों को उन सवालों पर भी नंबर दे दिए गए थे, जिन्हें चेक भी नहीं किया गया था. इनमें से कई अभ्यार्थियों ने तो अपनी पहचान जाहिर करने के लिए आंसर शीट पर रोल नंबर के साथ अपना नाम भी लिखा था, जो नियम के खिलाफ है. इसके बाद हाईकोर्ट ने पिछली परीक्षा को रद्द कर दोबारा परीक्षा कराने के आदेश दिए थे. लेकिन, हाईकोर्ट को इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.
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सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए पिछली परीक्षा को रद्द कर दोबारा परीक्षा कराने का आदेश दिया. 2011 मे दोबारा परीक्षा हुई. इसमें 14 नियुक्त हुए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में कुछ याचिकाएं पेंडिंग होने के कारण नियुक्ति के बाद इन जजों को कोई काम अलॉट नहीं किया गया था. अब शुक्रवार कोर्ट के फैसले के बाद इन जजों को केस अलॉटमेंट होने लगेगा.
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