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Section 377: सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद लखनऊ के LGBTQ समुदाय में जश्न का माहौल

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Section 377: सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद लखनऊ के LGBTQ समुदाय में जश्न का माहौल

जश्न मनाते लोग. Photo: News 18
जश्न मनाते लोग. Photo: News 18

फैसला आने के बाद लखनऊ में भी समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे को गले लगकर मुबारकबाद दी. उनका कहना है कि बहुत लंबी लड़ाई के ब ...अधिक पढ़ें

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आपसी सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से ही देश भर में LGBTQ समुदाय में जश्न का माहैाल है. लखनऊ में भी ये समुदाय खुशियां मना रहा है. फैसला आने के बाद लखनऊ में भी समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे को गले लगकर मुबारकबाद दी. उनका कहना है कि बहुत लंबी लड़ाई के बाद ये जीत मिली है. उन्हें उम्मीद है कि अब समाज में उनके समुदाय को बराबरी का सम्मान मिल सकेगा. लगभग 150 सालों से लागू ये कानून अब खत्म हो चुका है.

    बता दें फैसला सुनाने वाली संवैधानिक पीठ में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा भी शामिल थे. अदालत ने इस मामले में फैसला 17 जुलाई को ही सुरक्षित रख लिया था.

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 10 अहम बातें

    1. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध को एक मत से अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है.

    2. अदालत ने भारतीय दंड संहिता के Section 377 के एक हिस्से को, जो सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बताता है, तर्कहीन, बचाव नहीं करने वाला और मनमाना करार दिया.

    3. अदालत ने Section 377 को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया क्योंकि इससे समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है.

    4. Section 377 पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि समलैंगिकों के अधिकार भी दूसरे नागरिकों जैसे हैं. उन्होंने कहा, "हमें एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए और मानवता दिखानी चाहिए.".

    5. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पशुओं और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन क्रिया से संबंधित Section 377 का हिस्सा पहले जैसा ही लागू रहेगा.

    6. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और न्यायाधीश ए एम खानविलकर ने कहा कि खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाना मरने के समान है.

    7. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की Section 377 LGBT के सदस्यों को परेशान करने का हथियार था, जिसके कारण इससे भेदभाव होता है.

    8. सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा, 'सामाजिक नैतिकता की आड़ में दूसरों के अधिकारों के हनन की अनुमति नहीं दी जा सकती.'

    9. प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने कहा कि 'कोई भी अपने अस्तित्व से भाग नहीं सकता. हमारा फैसला कई पहलुओं पर आधारित होगा.'

    10. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मानवीय और मौलिक अधिकार हैं.

    (इनपुट: मोहम्मद शबाब)

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    Tags: Article 377, LGBTQ rights, Lucknow news, Supreme Court, Uttarpradesh news, लखनऊ