डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
कहते हैं बिना गुरू के किसी को कोई मंजिल नहीं मिलती है, गुरू को तो धार्मिक ग्रंथों में भगवान से ऊंचा दर्जा किसी को नहीं दिया गया है. 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस. देश के प्रथम उप-राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाने की परंपरा आज भी कायम है. साल में एक बार 5 सितंबर के दिन यह मौका आता है, जब छात्र- छात्राएं अपने शिक्षकों को सम्मानित करते हैं.
यह दिन हमें उस महान व्यक्ति की याद दिलाता है जो एक महान शिक्षक के साथ-साथ राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक भी थे. उस महान व्यक्तित्व को पूरी दुनिया डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से जानती है. स्कूलों में शिक्षक दिवस काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दक्षिण भारत के तिरुत्तनि स्थान में हुआ था, जो चेन्नई से 64 किमी उत्तर-पूर्व में है. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे देश के दूसरे राष्ट्रपति भी बने. राजनीति में आने से पहले उन्होंने अपने जीवन के 40 साल अध्यापन को दिए थे.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि बिना शिक्षा के इंसान कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है इसलिए इंसान के जीवन में एक शिक्षक होना बहुत जरुरी है. 1954 में भारत रत्न से सम्मानित डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसलिए शिक्षकों को सम्मान देने के लिए अपने जन्मदिन को 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाने की बात कही.
भारत में 'शिक्षक दिवस'5 सितंबर को मनाया जाता है, लेकिन विश्व के दूसरे देशों में इस मनाने कि तिथियां अलग-अलग हैं. यूनेस्को ने आधिकारिक रूप 1994 में 'शिक्षक दिवस' मनाने के लिए 5 अक्टूबर को चुना. इसलिए अब 100 से ज्यादा देशों में यह दिन 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है.
डॉ. राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे. उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है.
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डॉ. राधाकृष्णन के विचार
* शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें.
* पुस्तकें वह साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं.
* शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके.
* किताब पढ़ना हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची ख़ुशी देता है.
* मनुष्य को सिर्फ तकनीकी दक्षता नहीं बल्कि आत्मा की महानता प्राप्त करने की भी ज़रुरत है
* ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें परिपूर्णता देता है.
* शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. अत:विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए.
* दुनिया के सारे संगठन अप्रभावी हो जाएंगे, यदि यह सत्य कि ज्ञान अज्ञान से शक्तिशाली होता है उन्हें प्रेरित नहीं करता.
* अगर हम दुनिया के इतिहास को देखे तो पाएंगे कि सभ्यता का निर्माण उन महान ऋषियों और वैज्ञानिकों के हाथों से हुआ है,जो स्वयं विचार करने की सामर्थ्य रखते हैं,जो देश और काल की गहराइयों में प्रवेश करते हैं,उनके रहस्यों का पता लगाते हैं और इस तरह से प्राप्त ज्ञान का उपयोग विश्व श्रेय या लोक-कल्याण के लिए करते हैं
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