#PGStory: हमारी चोरी से घी-चीनी से रोटी खाती थी वो पहले पीजी वाली रूममेट
सभी को दो-दो बूंद डालती थी, अपनी कटोरी में भर भरकर डालती थी. और फिर कहती थी, हमारे बिहार में तो न ऐसे ही खाते हैं.
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(News18 हिन्दी की सीरीज़ 'पीजी स्टोरी' की 85वीं कहानी नए लड़के की है. जिसे पीजी में ऐसी रूम मेट मिली जो किचन के सामान पर कब्जा जमाए रखती थी. एक दिन उसने देखा कि वह उनकी चोरी से घी-चीनी से रोटी खा रही है.)
घर से आए और पीजी में रहते हुए पहला साल था. जिस पीजी में रहते वहां चार लड़कियां थीं. खाने-पीने का खर्च हम आपस में बांटते थे. उसमें से एक का निक नेम हमने 'मां' रख दिया था. और प्यार से उसे जया मां (नाम बदला हुआ) कहते थे. क्योंकि उसकी बाते, बर्ताव का तरीका सब मांओं वाले थे. या ये भी कह सकते हैं कि वो केयरिंग थी.
जैसे हम देर से आते तो कह देती समय से आया करो. खाना बनाकर सभी को बुलाकर बिठा लेती. खाना खाते हुए सभी को साथ बैठाती, कहानियों की मां की तरह सभी को खाना सर्व करती. दो चपाती तेरी, एक तेरी, ये उसका दही, ये इसके चावल... चपाती पर घी लगाने की जिम्मेदारी. हम किचन से खाना बनाकर लाते और उसे दे देते. क्योंकि सर्व वही करती थी.
घी का डिब्बा हमेशा अपने पास रखती. तब हम ये नहीं समझ पाते थे कि वो ये सब चालाकियों से करती है. हमसे बीच-बीच में पूछती चपाती पर घी डाल दूं. कभी-कभी मन चाहता कह दूं, बिना घी की चपाती कौन खाता है.
सभी को दो-दो बूंद डालती थी, अपनी कटोरी में भर भरकर. और फिर कहती थी, हमारे बिहार में तो न ऐसे ही खाते हैं.
हमें दिखाती कि वो सिर्फ दो ही चपाती खाती है. पर जब हम कॉलेज चले जाते तो खाती. उसने अपने कमरे में एक चीनी का छोटा डिब्बा भी रखा हुआ था. एक दिन हम डिनर के बाद वॉक पर निकल गए. वो रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े कर उसमें घी और चीनी डालकर, खा रही थी. चेहरे पर विलेन जैसे मुस्कुराहट के साथ.
हम शाम की वॉक कर के आए उससे कहा, मां धप्पा. एक दम से हकबकाते हुए बोली, मैं तो सबके लिए बना रही थी, घी-चीनी रोटी.
जो कि उसके मुंह में इतना भरा था कि चीनी-घी उसके मुंह से टपक रही थी. फिर उसके बाद से वो इतना झेंप गई कि कभी भी खाना खाते हुए हमसे नज़रे नहीं मिलाई.
(सीरीज PG Story में पीजी में रहने वाली उन लड़कियों और लड़कों के तजुर्बों को सिलसिलेवार साझा किया जा रहा है, जो अपने घर, गांव, कस्बे और छोटे शहर से निकलकर महानगरों में पढ़ने, अपना जीवन बनाने आए. हममें से ज़्यादातर साथी अपने शहर से दूर, कभी न कभी पीजी में रहे या रह रहे हैं. मुमकिन है, इन कहानियों में आपको अपनी जिंदगी की भी झलक मिले. आपके पास भी कोई कहानी है तो हमें इस पते पर ईमेल करें- ask.life@nw18.com. आपकी कहानी को इस सीरीज में जगह देंगे.)
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