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किसानों को तेज़ पड़े तूफ़ान के थपेड़े, कच्चे ही झड़ गए आम, लीची
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किसानों को तेज़ पड़े तूफ़ान के थपेड़े, कच्चे ही झड़ गए आम, लीची

बुधवार रात आए आंधी तूफान से कुमाऊं में तराई से लेकर पहाड़ी इलाकों तक खेती और बागवानी को भारी नुकसान हुआ है.
बुधवार रात आए आंधी तूफान से कुमाऊं में तराई से लेकर पहाड़ी इलाकों तक खेती और बागवानी को भारी नुकसान हुआ है.

बीमा कंपनियां ओले और आंधी की वजह से हुए फ़सलों के नुक़सान का भुगतान करने से इनकार कर रही हैं.

    बुधवार रात आए आंधी तूफान से कुमाऊं में तराई से लेकर पहाड़ी इलाकों तक खेती और बागवानी को भारी नुकसान हुआ है. विशेषकर आम और लीची की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है. आंधी की मार ने किसान को बदहाल कर दिया है.

    बुधवार रात आई भयंकर आंधी के बाद कुमाऊं के आंगन हल्द्वानी में आम की फसल बर्बाद हो गई है. आम को तैयार होने में अभी तकरीबन एक महीने का वक्त लगना था लेकिन आंधी ने आम बनने से पहले ही अमिया को गिरा दिया. यही हाल लीची और अन्य फसलों का भी है.

    आंधी के थपेड़े बागवानों की तरह किसानों के चेहरों पर भी पढ़े हैं. तेज आंधी से पत्तेदार हरी सब्जियां -  कद्दू, खीरा, लॉकी, तोरी आदि भी नहीं बच पाई हैं. इसके अलावा प्याज़ की फसल भी सड़ने की आशंका बन गई है.

    लेकिन किसान केवल इस बात से परेशान नहीं है बल्कि किसान की परेशानी उन बीमा कंपनियों ने भी बढ़ा दी है जिनके जरिए उन्होंने फसल का बीमा करवाया था.

    किसान नरेंद्र मेहरा बताते हैं कि इसी तरह की आशंका से बचने के लिए उन्होंने अपने बाग का बीमा करवाया था. लेकिन बीमा कंपनियां फ़सल से हुए ओले और आंधी की वजह से हुए नुक़सान का भुगतान करने से इनकार कर रही हैं. मेहरा पूछते हैं कि अगर इन दोनों वजहों से हुए नुक़सान की भरपाई नहीं होनी है तो फिर बीमा करवाने का मतलब ही क्या है.

    किसानों को प्रकृति की मार से बचाने के लिए ही फ़सल बीमा शुरू किया गया था लेकिन इन कंपनियों के रवैये से ऐसा लगता है कि इनका मक़सद सिर्फ़ प्रीमियम बटोरना है. चिंता की बात यह है कि किसान को पता ही नहीं कि इस धोखाधड़ी की शिकायत कहां करें.

    (शैलेंद्र नेगी की रिपोर्ट)