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भारत के बिना संभव नहीं था अमेरिका का ‘टच द सन’ मिशन

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भारत के बिना संभव नहीं था अमेरिका का ‘टच द सन’ मिशन

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

नासा ने इस पूरे प्रोजेक्ट पर 103 अरब से ज़्यादा रुपये अब तक खर्च कर डाले हैं. 09 फीट 10 इंच लंबा है यह यान लगभग 612 किल ...अधिक पढ़ें

    अब तक आपने सुना था कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा या भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के मिशन चंद्रमा, मंगल ग्रह या अंतरिक्ष के किसी हिस्से में जा रहे हैं.  लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि सूर्य तक भी कोई मिशन जा सकता है? गर्मी के दिनों में जब ज़रा सी धूप में निकलते ही स्किन जल जाती है तो आप सोचिए सूर्य के पास जाकर क्या होगा?

    लेकिन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने यह जोखिम उठाकर इतिहास रच दिया है.  नासा ने 'टच द सन' नाम के मिशन के तहत रविवार को पार्कर सोलर प्रोब यान लॉन्च किया. दुनिया का यह पहला अंतरिक्ष यान है, जो पहली बार सूर्य को बेहद करीब से जानने की कोशिश के तहत सूर्य के सबसे नजदीक से गुजरेगा.

    लेकिन यह अकेले नासा के प्रयासों से सफल नहीं हुआ है. नासा के इस नए मिशन के लिए भारत ने साठ साल पहले ज़मीन तैयार की थी.

    साठ साल पहले भारतीय-अमेरिकी खगोल भौतिकशास्त्री सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने 'सौर पवन' के अस्तित्व के प्रस्ताव को प्रकाशित किया था. उन्होंने डॉ. एयुगेन नेवमैन पार्कर के शोध प्रकाशन का रास्ता साफ किया था. नासा का पूरा मिशन इसी खोज पर आधारित है. 'टच द सन' मिशन की शक्ल सौर पवन पर रिसर्च के बिना कुछ और ही होती.

    भारतीय-अमेरिकी खगोल भौतिकशास्त्री सुब्रमण्यम चंद्रशेखर


    क्या है सौर पवन?
    'सौर पवन' तेज़ी से सूर्य से बाहर से आने वाले कणों या प्लाज़्मा की बौछार को कहा जाता है. ये कण अंतरिक्ष में चारों दिशाओं में फैलते जाते हैं. इन कणों में मुख्यतः प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन (संयुक्त रूप से प्लाज्मा) से बने होते हैं, जिनकी ऊर्जा लगभग एक किलो इलेक्ट्रॉन वोल्ट (केईवी) हो सकती है.

    1958 में पार्कर ने सोलर विंड की खोज की थी. उस समय उनकी उम्र 31 वर्ष की थी. उन्होंने कहा था कि सूर्य से लगातार चा‌र्ज्ड पार्टिकल निकलते रहते हैं और अंतरिक्ष में घूमते रहते हैं. वैज्ञानिक समुदाय ने उनकी इस स्थापना को मानने से इन्कार कर दिया था. वैज्ञानिकों का मानना था कि अंतरिक्ष बिलकुल खाली है. लेकिन भारतीय-अमेरिकी खगोल भौतिकशास्त्री सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने इस रिसर्च को जरूरी समझते हुए इसे प्रकाशित करने का फैसला किया. भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में काम करने के लिए 1983 में उन्हें नोबल पुरस्कार मिला.

    क्या है इस प्रोजेक्ट की खासियत?
    नासा ने इस पूरे प्रोजेक्ट पर 103 अरब से ज़्यादा रुपये  अब तक खर्च कर डाले हैं. 09 फीट 10 इंच लंबा है यह यान लगभग 612 किलोग्राम का है. सूर्य के बगल से गुजरने वाले इस यान की तापमान सहने की क्षमता है 1371 डिग्री है. यह यान 190 किमी प्रति सेकेंड की रफ्तार से चलेगा, ताकि सूर्य की गर्मी के प्रकोप से बच सके

    यह 85 दिन बाद यानी 5 नवंबर को सूर्य के ऑर्बिट में पहुंचेगा. इस यान को डेल्टा-4 रॉकेट से केप कानावेरल एयरफोर्स स्टेशन से भेजा गया है और यह शनिवार को हीलियम अलार्म बजने की वजह से घंटे की देरी से रवाना हुआ था.



    अगले सात साल तक यह यान सूर्य के कोरोना का 24 चक्कर लगायेगा. सूरज तक पहुंचने की इस यात्रा के दौरान यह यान कई ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण मार्ग से होकर भी गुजरेगा. इसमें बुध ग्रह का गुरुत्वाकर्षण मार्ग भी इसकी मदद करेगा.

    कोरोना क्या है?
    धरती और सूरज के बीच की औसत दूरी 9 करोड़ 30 लाख मील है. सूर्य के वायुमंडल को कोरोना कहते हैं. यह यान कोरोना का ही विस्तृत अध्ययन करने के लिए भेजा गया है. कोरोना को आंखों से सूर्य ग्रहण के दौरान देखा जा सकता है. यह धुंधला सा झिलमिलाता वातावरण होता है.

    कैसे सामना करेगा आग उगलते सूर्य का?
    इस यान को बेहद शक्तिशाली हीट शील्ड से सुरक्षित किया गया है. यह शील्ड ताप को झेल सकने में मदद करेगी. धरती की तुलना में 500 गुना ज्यादा रेडिएशन इस यान को झेलना होगा, जो आसान नहीं होगा. यह कार्बन शील्ड 11.43 सेमी मोटी है. यान जब सूरज के सबसे करीब से गुजरेगा, तो वहां का तापमान 2500 डिग्री सेल्सियस तक होगा. नासा के मुताबिक, अगर सबकुछ ठीक रहा, तो इस कार जैसे दिखने वाले यान के अंदर का तापमान 85 डिग्री सेल्सियस तक रहेगा.

    अमेरिकी सौर खगोलशास्त्री यूजीन न्यूमैन पार्कर


    किसके नाम पर गया यह मिशन?
    इस यान का नाम अमेरिकी सौर खगोलशास्त्री यूजीन न्यूमैन पार्कर के नाम पर रखा गया है. पार्कर अब पहले जीवित वैज्ञानिक बन गए हैं, जिनके नाम पर नासा मिशन है. इन्होंने 1958 में पहली बार अनुमान लगाया था कि सौर हवाएं होती हैं. आवेशित कणों और चुंबकीय क्षेत्रों की धारा होती हैं, जो सूर्य से निकलती रहती हैं. जब ये धाराएं तेजी से निकलती हैं, तो धरती पर उपग्रह लिंक प्रभावित होता है. ऐसा क्यों होता है, अब मिशन इस रहस्य से ही पर्दा उठायेगा.

    11 लाख लोगों के नाम भी सूरज तक पहुंचेंगे
    इस यान के साथ करीब 11 लाख लोगों के नाम भी सूरज तक पहुंचेंगे. इसी साल मार्च में नासा ने अपने ऐतिहासिक मिशन का हिस्सा बनने के लिए लोगों से नाम मंगाये थे. नासा ने बताया था कि मई तक करीब 11 लाख 37 हजार 202 नाम उन्हें मिले थे, जिन्हें मेमोरी कार्ड के जरिये यान के साथ भेजा गया है.

    Tags: ISRO, Nasa