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तुलार गुफा के शिवलिंग का आखिर क्या है रहस्य...

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तुलार गुफा के शिवलिंग का आखिर क्या है रहस्य...

ये है तुलार गुफा
ये है तुलार गुफा

कहते हैं कि जो भी तुलार गुफा की तरफ जाने की कोशिश करता है. वो अंजानी शक्तियों का शिकार हो जाता है

    कहते हैं बाणासुर के पास बहुत सी अद्भुत शक्तियां थीं. उन शक्तियों से इंसान ही नहीं देवता भी डरा करते थे. जंगल में आदिवासियों के बीच ये बात पूरे यकीन के साथ कही जाती है कि जो भी उस तुलार गुफा की तरफ जाने की कोशिश करता है. वो अंजानी शक्तियों का शिकार हो जाता है, लेकिन टीम ने इन बातों को कहानी मानते हुए ज्यादा ध्यान नहीं दिया. सफर के हर घंटे के साथ तुलार गुफा का फासला कम होता जा रहा था लेकिन मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं. अभी तीन नदियों को परा करना था और रात होने से पहले इंसानी बस्ती तक पहुंचना था.

    टीम हर तरह से खतरे के लिए तैयार थी, लेकिन वास्तव में खतरा क्या होता है इसका पता तो टीम को अबूझमाड़ के जंगल के बीचों बीच पता चला. नक्सलियों के खौफ से गाड़ी के ड्राइवर ने जंगल में अंदर जाने से मना कर दिया तो टीम के सदस्यों ने पैदल ही आगे बढ़ने का फैसला किया. रहस्यमयी तुलार गुफा अभी कितनी दूर थी, टीम कैसे वहां तक पहुंचेगी, कुछ भी पता नहीं था. लेकिन टीम इन बातों से परे यही सोच रही थी कि क्या आज भी तुलार गुफा में बाणासुर के आने का दावा हक़ीक़त है या कोरा फ़साना. कहीं ऐसा तो नहीं कि इस तरह का दावा करने वाले किसी भ्रम के कारण ऐसी कहानी गढ़ गए हों और अब वो ही कहानी भ्रम का रूप ले चुकी है. इन सब सवालों का जवाब तभी मिलेगा जब टीम तुलार गुफा पहुंचेगी. तभी घने जंगल में एक इंसान साइकिल पर दिखाई दिया. टीम की थोड़ी सी हिम्मत बढ़ी.

    साइकिल वाले शख्स ने बताया कि यहां से कुछ ही दूर पर इंद्रावती नदी है. उस शख्स ने टीम के सदस्यों को इंद्रावती नदी तक साइकिल से छोड़ने की बात मान ली. टीम पहुंची दंडकारण्य के बीहड़ों से बहने वाली इंद्रावती नदी के पास और यहीं से शुरु होती है टीम के सफर की कठिनाई. इस नदी को पार करने के बाद जंगल में 20 किलोमीटर का सफर तय करना होगा. इसके बाद दो और नदियों को पार करना होगा. नदी यहां उथली हुई दिखाई दे रही है लेकिन पानी के हरे रंग देखकर गहराई का अंदाजा लगाया जा सकता है. यहां कोई नाव या नदी के पार करने की व्यवस्था तो नहीं है लिहाजा टीम को नदी तैरकर ही पार करनी होगी. इंद्रावती नदी को तैर कर पार करने के बाद पहला बोर्ड दिखाई दिया, जो गुफा की दिशा बता रहा था.

    बोर्ड पर बताया गया है कि तुलार गुफा की दूरी 20 किलोमीटर है. गांववालों ने टीम को बताया था कि रास्ते में धान के खेत मिलेंगे, उसके बगल से एक पगडंडी मिलेगी, जो तुलार गुफा तक ले जाएगी. दंडकारण्य के बीहड़ में सुबह से शाम तक का सफर तय करने के बाद टीम पहुंची सातधार नदी के किनारे पर. कहा जाता है कि दंडकारण्य की सात दिशाओं से धाराएं निकलती हैं, जिनसे मिलकर बनती है ये सातधार नदी. सातधार नदी में घुटने तक ही पानी है, लेकिन पानी का बहाव काफी तेज है. जिसकी वजह से टीम को नदी पार करने में दिक्कत का सामना करना पड़ा.

    दूसरी बात पत्थरों पर इतनी फिसलन है कि जमाकर पैर न रखा जाए तो गिरने से चोट लग सकती है. टीम ने जैसे-तैसे नदी को पार किया. अब इसके आगे हर कदम फूंक-फूंक कर रखना था क्योंकि टीम जंगल के उस हिस्से में पहुंच चुकी थी, जहां लाल सलाम यानी नक्सलियों का राज चलता है. खैर अभी तक तो टीम का नक्सलियों से सामना नहीं हुआ था लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि खतरा टल चुका है. हो सकता है कि घनी झाड़ियों के पीछे से कोई टीम पर निगाह रख रहा हो.

    धीरे-धीरे सूरज भी ढल रहा है, लेकिन दूर-दूर तक तुलार गुफा दिखाई नहीं दे रही है. जंगल के थका देने वाले सफर के बाद टीम का सामना होता है तीसरी नदी से, जो संकट बनकर सामने खड़ी है. ये नदी इतनी चौड़ी है कि इसे तैर कर पार करना असंभव है. तभी इस जंगल में मिले मंगलू दादा. मंगलू दादा ने अपने नाव से टीम को नदीं पार करवा देंगे. नदी में ये छोटी सी नाव लगातार हिचकोले खा रही है और अनबैलेंस हो रही है. ऐसे में नाव के पलटने का भी डर बना हुआ है. किसी तरह नाव के सहारे टीम नहीं पार कर गई. रात गहराने के साथ जंगल में ठंड बढ़ती जा रही थीं. तुलार गुफा के तिलिस्म को जानने के लिए टीम सुनसान जंगल में सुबह होने का इंतजार करने लगी.

    तुलार गुफा में ऐसा आखिर क्या है जो लोग वहां जाने से डरते हैं? क्या गुफा तक पहुंचने की मुश्किलें ही डर की असली वजह हैं? जानिए अंतिम अंक में....