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इस योजना के चलते दिल्ली से ज्यादा खुश हैं बिहार के भिखारी
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इस योजना के चलते दिल्ली से ज्यादा खुश हैं बिहार के भिखारी

अब भीख मांगना दिल्ली में अपराध नहीं है. इस कानून के 25 प्रावधान खत्म किए गए हैं. जिनमें बिना वारंट गिरफ्तारी, किसी भी व ...अधिक पढ़ें

    पिछले हफ्ते दिल्ली हाईकोर्ट ने भीख मांगने को डिक्रिमनलाइज कर दिया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि बॉम्बे प्रीवेंशन ऑफ बैगरी एक्ट (बॉम्बे भिक्षावृत्ति निरोधक अधिनियम), 1959 की कुछ धाराएं असंवैधानिक है. यह कानून दिल्ली पर भी लागू होता था. भीख मांगने से जुड़ा कोई भी केंद्रीय कानून नहीं है. कई राज्य और केंद्रशासित प्रदेश भीख मांगने पर अपने कानून का आधार बॉम्बे एक्ट को ही बना रखा है. हर्ष मंदर और कार्तिक साहनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया और इसी के साथ 1959 के बॉम्बे एक्ट की कई धाराओं को निरस्त कर दिया गया.

    भीख मांगने का मतलब, "राज्य सभी को सामाजिक सुरक्षा देने में रहा है नाकाम"
    जिन 25 प्रावधानों को खत्म किया गया है उनमें बिना वारंट गिरफ्तारी की अनुमति, किसी भी व्यक्ति के भीख मांगते पाये जाने पर कैद करना, व्यक्ति को कोर्ट ले जाना, संक्षिप्त छानबीन करना और 10 साल तक की कैद आदि शामिल हैं. दिल्ली की एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरि शंकर की बेंच ने अपने फैसले में कहा, "लोग सड़कों पर इसलिये भीख नहीं मांगते क्योंकि वे ऐसा करना चाहते हैं बल्कि इसलिए क्योंकि उनकी मजबूरी होती है... सरकार का कर्तव्य होता है कि वह सभी को सामाजिक सुरक्षा दे. ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी के पास मूलभूत सुविधाएं हैं. अगर आज भी सड़कों पर भिखारी मौजूद हैं तो यह इस बात का सुबूत है कि राज्य सभी नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने में नाकामयाब रहा है."

    सड़कों पर रहने वाले नेत्रहीनों और विकलांगों को तुरंत किया जा सकता था कैद
    यह कानून तत्कालीन बॉम्बे (अब मुंबई) की सड़कों को बेसहाराओं, कुष्ठरोग पीड़ितों और मानसिक रूप से बीमार लोगों से साफ रखने के लिए बनाया गया था. ताकि उन्हें उनके लिए निर्धारित संस्था में भेजा जा सके. सेक्शन 20 (जिसे अब हटा दिया गया है) एक चीफ कमिश्नर को किसी नेत्रहीन, विकलांग या लाइलाज रोग से पीड़ित सड़क पर रहने वाले व्यक्ति को तुरंत एक सर्टिफाइड संस्था में कैद करने की असीमित शक्तियां देता है.

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    कानून अब भी नहीं हुआ है पूरी तरह से खत्म
    कानून की कुछ धाराओं को निरस्त करने के बावजूद कोर्ट ने भीख मांगने को अपराध के रूप में ट्रीट करने वाले पूरे कानून को खत्म नहीं किया है. इसका कारण कानून के सेक्शन 11 जैसे नियम हैं. जिसमें किसी को भीख मंगवाने पर जुर्माना लगता है. जबरदस्ती भीख मंगवाने और भीख मांगने वालों का रैकट चलाने वाले भी इस कानून की जद में आते हैं. जिनका हवाला देकर इस एक्ट को बनाए रखा गया है. हालांकि जो एक्टिविस्ट इस एक्ट को खत्म किए जाने की वकालत कर रहे थे, उनका कहना है कि इन अपराधों से भारतीय दंड संहिता के दूसरे कानूनों के जरिए निपटा जा सकता है.

    इससे जुड़ा एक नया कानून भी आने वाला था
    इस कानून को केंद्र सरकार ने पर्सन्स इन डेस्टीट्यूशन (प्रोटेक्शन, केयर एंड रिहैबिलिटेशन) मॉ़डल बिल, 2016 यानि अभावग्रस्त (संरक्षण, देखभाल और पुनर्वास) व्यक्तियों के लिए मॉडल विधेयक, 2016 के जरिए खत्म करने की कोशिश की थी. जिसमें भिक्षावृत्ति कानून को खत्म किए जाने और हर जिले में बेसहारा लोगों के लिए एक पुनर्वास केंद्र खोलने की मांग की गई थी. नये कानून के भी कुछ प्रावधानों में कैद की अनुमति थी. हालांकि बिल पर किसी भी बातचीत को 2016 में ही टाल दिया गया था.

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    बहुत सी संस्थाएं कर रही हैं पुनर्वास की दिशा में काम
    टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के फील्ड एक्शन प्रोजेक्ट 'कोशिश' के डायरेक्टर मोहम्मद तारिक कहते हैं कि यह कानून नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है. वह महाराष्ट्र जैसे राज्यों का उदाहरण देते हैं. जहां पर भिखारियों की जनसंख्या 24,307 रिकॉर्ड की गई है. लेकिन एक्टिविस्ट कहते हैं कि इस एक्ट के दायरे में और बहुत से भिखारी आते हैं. तारीक कहते हैं, "राज्य में भिखारियों को कैद करने के लिए 14 आवास हैं. इनमें से कई आवास बिना सुपरिटेंडेंट, प्रोबेशन ऑफिसर या डॉक्टरों के हैं. कुछ महीने पहले ही कई भिखारियों को नासिक में पकड़ा गया था और बिना किसी उचित सुनवाई के एक साल के लिए कैद कर दिया गया था जो कि मौजूदा कानून का भी उल्लंघन था."

    तारीक ने सुझाया कि एक्ट को हटाने के लिए विधायी और न्यायिक हस्तक्षेप की भी जरूरत होगी. इसलिए तुरंत सुधार के लिए बिहार सरकार की 'मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना' जैसे कुछ वैकल्पिक कदम उठाये जाने की जरूरत है. बिहार सरकार की इस योजना में 'कोशिश' नॉलेज पार्टनर है. इस कानून के तहत लोगों को कैद किए जाने के बजाए, खुले घर बनाए जायेंगे और बेसहारा लोगों तक दूसरे लोगों की पहुंच सुनिश्चित की जायेगी. इनके पुनर्वास सेंटर भी बनाए जायेंगे जिनमें उनका इलाज, परिवार से फिर मिलवाना और व्यावसायिक ट्रेनिंग भी दी जायेगी.

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    Tags: Chief Justice Delhi High Court, Crime report, DELHI HIGH COURT, Disabilities